रविवार, 4 फ़रवरी 2024

*शारद बोल कहा वह ईश्वर*

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*पंडित, राम मिलै सो कीजे ।*
*पढ़ पढ़ वेद पुराण बखानैं,*
*सोई तत्त्व कह दीजे ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*शारद बोल कहा वह ईश्वर,*
*मान कितो उन से बतराऊं ।*
*ईश मिले तब होत सुखी सुन,*
*आत महाप्रभु के चलि पांऊं ।*
*आपस में अरदास करी युग,*
*भक्ति करो अब नांहिं हराऊं ।*
*धारि लिई उर भीर हु छाड़त,*
*होत नई इक ह्वां फिर जाऊं ॥३८२॥*
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सरस्वतीजी ने वचन कहा- "वे बालक नहीं हैं ईश्वर के अवतार हैं मेरा उनके आगे कितना महत्त्व है । जो उनसे मैं बात करूँ अर्थात् उनसे बात करने की शक्ति मुझ में नहीं है ।
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जिन प्रभु का स्पर्श मन वाणी भी नहीं कर सकते, वे ईश्वर आपको मिल गये हैं, इससे अधिक आपका हित क्या होगा !"
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भट्टजी सरस्वतीजी का उक्त वचन सुनकर प्रसन्न हुए और वहाँ से पैदल चलकर महाप्रभुजी के पास आये तथा दोनों ने आपस में एक दूसरे से प्रार्थना की । महाप्रभुजी ने भट्टजी को कहा- "आप आज से दूसरों को हराने का काम छोड़ दीजिये और प्रभु की भक्ति कीजिये ।"
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यह बात सुनते ही भट्टजी ने अपने हृदय में धारण कर ली, फिर सब भीड़ हटाकर केवल भक्ति ही करने लगे । पश्चात् कालान्तर में दुष्टों ने मथुरा में एक नवीन दुष्टता की तब वहाँ गये और दुष्टों को मारकर वह दुष्टता हटाई ॥
(क्रमशः)

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