बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

*पण्डित का अहंकार । पाप तथा पुण्य*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू तो तूं पावै पीव को, मैं मेरा सब खोइ ।*
*मैं मेरा सहजैं गया, तब निर्मल दर्शन होइ ॥*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
(४)पण्डित का अहंकार । पाप तथा पुण्य ।
श्रीरामकृष्ण ने डाक्टर से फिर कहा - "देखो, अहंकार के बिना गये ज्ञान नहीं होता । मनुष्य मुक्त तभी होता है जब 'मैं' दूर हो जाता है । 'मैं' और 'मेरा' - यही अज्ञान है । ‘तुम’ और 'तुम्हारा' - यही ज्ञान है ।
.
जो सच्चा भक्त है, वह कहता है, 'हे ईश्वर ! तुम्हीं कर्ता हो, तुम्हीं सब कुछ कर रहे हो, मैं तो बस यन्त्र ही हूँ । मुझसे जैसा कराते हो, मैं वैसा ही करता हूँ । यह सब धन तुम्हारा है, ऐश्वर्य तुम्हारा है, संसार तुम्हारा है । तुम्हारा ही घर-परिवार है, मेरा कुछ भी नहीं, मैं दास हूँ । तुम्हारी जैसी आज्ञा होगी, उसी के अनुसार सेवा करने का मेरा अधिकार है ।'
.
"जिन लोगों ने थोड़ीसी पुस्तकें पढ़ी हैं, उनमें अहंकार समा जाता है । कालीकृष्ण ठाकुर के साथ ईश्वरीय बातें हुई थीं । उसने कहा, 'वह सब मुझे मालूम है ।' मैंने कहा, ‘जो दिल्ली हो आया है, क्या यह कहता फिरता है कि मैं दिल्ली हो आया – मैं दिल्ली हो आया ? - क्या उसे इसके लिए घमण्ड हो सकता है ? जो बाबू है, क्या वह कहता फिरता है, मैं बाबू हूँ ?’ "
.
श्याम बसु - वे(कालीकृष्ण ठाकुर) आपको बहुत मानते हैं ।
श्रीरामकृष्ण - अजी क्या कहूँ, दक्षिणेश्वर कालीमन्दिर की एक भंगिन को क्या ही अहंकार था । उसकी देह में दो-एक गहने थे । वह जिस रास्ते से आ रही थी, उसी रास्ते से दो-एक आदमी उसकी बगल से निकल रहे थे । भगिन ने उनसे कहा, 'ए, हट जा ।' तब फिर दूसरे आदमियों के अहंकार की बात क्या कहूँ !
.
श्याम बसु - महाराज, जब ईश्वर ही सब कुछ कर रहे हैं तो फिर पाप का दण्ड कैसा ?
श्रीरामकृष्ण - तुम्हारी तो सुनार की-सी बुद्धि है !
नरेन्द्र - सुनार की बुद्धि अर्थात् calculating (बनियाई) बुद्धि ।
श्रीरामकृष्ण - अरे भाई, तू आम खा ले और प्रसन्न हो जा । बगीचे में कितने सौ पेड़ हैं, कितने हजार डालियाँ हैं, कितने कोटि पत्ते हैं, इन सब के हिसाब से तुझे क्या काम ? तू आम खाने के लिए आया है, आम खा जा ।
.
(श्याम वसु से) तुम्हें इस संसार में मनुष्य का शरीर ईश्वरप्राप्ति की साधना करने के लिए मिला है । ईश्वर के पाद-पद्मों में किस तरह भक्ति हो उसी की चेष्टा करो । तुम्हें इन सब वृथा बातों से क्या मतलब ? फिलॉसफी (दर्शन-शास्त्र) लेकर विचार करने से तुम्हारा क्या होगा ? देखो, आध पाव शराब से ही तुम्हें नशा होता है, फिर शराबवाले की दुकान में कितने मन शराब है, इसका हिसाब लगाकर क्या करोगे ?
.
डाक्टर - और ईश्वर की शराब अनन्त है । कुछ पता ही नहीं कि कितनी है !
श्रीरामकृष्ण - (श्याम वसु से) - ईश्वर को आममुख्तारी क्यों नहीं दे देते ? उस पर सारा भार छोड़ दो । अच्छे आदमी को अगर कोई भार दे दे, तो क्या वह कभी अन्याय कर सकता है ? पाप का दण्ड वे देंगे या नहीं यह वे जानें ।
डाक्टर - उनके मन में क्या है, यह वे जानें । आदमी हिसाब लगाकर क्या कहेगा ? वे हिसाब से परे हैं ।
.
श्रीरामकृष्ण - (श्याम बसु से) - तुम कलकत्तेवाले बस यही एक राग अलापते हो । तुम लोग यही कहा करते हो, 'ईश्वर में पक्षपात है', क्योंकि एक को उन्होंने सुख में रखा है, और दूसरे को दुःख में । ये मूर्ख खुद जैसे हैं, उनके स्वयं के भीतर जैसा है, वैसा ही ये ईश्वर के भीतर भी देखते हैं ।
.
"हेम दक्षिणेश्वर जाया करता था । मुलाकात होने पर ही मुझसे कहता था, 'क्यों भट्टाचार्य महाशय, संसार में एक ही वस्तु है - मान – क्यों ?' मनुष्य जीवन का उद्देश्य ईश्वर-लाभ है, यह इने-गिने लोग ही कहते हैं ।"
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें