बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

*श्री रज्जबवाणी सवैया ~ ५*

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*ऐसो राजा सोई आहि,*
*चौदह भुवन में रह्यो समाहि ।*
*दादू ताकी सेवा करै,*
*जिन यहु रचिले अधर धरै ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ३९१)
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
दियो हरि आज गरीब को राज,
मिल्यो सब साज हो, छत्र छबीले१ शीश विराजे२ ।
जहा लग भानु तहां लग आन३,
अगम्महुं जान शब्द निशान४, प्रकट हिं बाजे ॥
उठे सब साल५ दयूं६ अरि काल,
रह्यो बिच लाल७ हो ज्ञान गयंद८, चढ्यो शिर गाजे ॥
हो दादू को राज गरीब निवाज९,
अनाथ की लाज हो रज्जब रंक के पूरण काजे ॥५॥
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❉परम नम्र दादूजी को हरि ने इस समय हम साधक जनों का शासन रूप राज्य दिया है । इसमें हमें साधन रूपी सभी साज मिल गए हैं । महान् शोभा-युक्त१ दादूजी महाराज के शिर पर विवेकरूप छत्र सुशोभित२ है,
❉जहां तक सूर्य की गति है वहां तक दादूजी की विचार रूप दुहाई३ फिरी हुई है, अर्थात उनके निष्पक्ष विचार सर्वत्र व्यापक हैं । वे अगम ब्रह्म को जानते हैं । उनका शब्दरूप नगारा४ प्रकट रूप से बज रहा है ।
❉उनके सब दुख५ हट गये हैं । उनने कालरूप शत्रु का दमन६ कर दिया है । वे निरंतर प्रियतम७ प्रभु के चिन्तन में ही लगे रहते हैं और ज्ञानरूप हाथी८ पर चढे हुये साधक समूह में उपदेश रूप गर्जना करते हैं ।
❉हे सज्जनों ! दादूजी का राज्य गरीबों पर कृपा९ करने वाला है । अनाथों की लज्जा रखनेवाला है । दादूजी के राज्य में मुझ रंक के तो सब कार्य पूर्ण हो गये हैं ।
(क्रमशः)

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