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*दादू माला तिलक सौं कुछ नहीं,*
*काहू सेती काम ।*
*अन्तर मेरे एक है, अहनिशि उसका नाम ॥*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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मनहर -
भगवां जु भावै नांहि, विभूति लगावे नांहि,
पाखंड सुहावै नांहि, ऐसी कछु१ चाले है ।
टीका माला मानैं नांहि, जैन स्वांग जानैं नांहि,
प्रपंच प्रमानैं नांहि, ऐसा कछु हाल२ है ॥
सींगी मुद्रा सेवे नांहिं, बौद्ध विधि लेवे नांहिं,
भ्रम दिल देवे नांहिं, ऐसा कछु ख्याल३ है ।
तुरकी तो खोदि गाड़ी, हिंदुन की हद छाड़ी,
अंतर अजर४ मांडी५, ऐसे दादू लाल६ है ॥१॥
अपने गुरुदेव दादूजी का व्यवहार बता रहे हैं -
✦भगवा वस्त्र नहीं पहनते, भस्म नहीं लगाते, पाखंड उन्हें अच्छा नहीं लगता, उनकी ऐसी विलक्षण१ रीति है ।
✦तिलक और माला से कल्याण नहीं मानते, जैनों के भेष को भी अच्छा नहीं जानते, प्रपंच का सम्मान नहीं करते, उनकी ऐसी विलक्षण दशा२ है ।
✦सींगी मुद्रा नहीं रखते, बौद्धों की विधि को ग्रहण नहीं करते, भ्रम में मन नहीं लगते उनका ऐसा विलक्षण विचार३ है ।
✦मुसलमानों की मर्यादा खेद गाड़ी अर्थात छोड़ दी और हिन्दुओं की मर्यादा भी छोड़ दी है । हृदय के भीतर सदा स्थिर एक-रस४ ब्रह्म से ही वृत्ति लगाई५ है । हमारे प्यारे६ गुरुदेव दादूजी ऐसे रहे हैं ।
(क्रमशः)

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