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*सतगुरु काढे केस गहि, डूबत इहि संसार ।*
*दादू नाव चढाइ करि, कीये पैली पार ॥*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
मरे हु जरे सु करे जु कटाछि में,
छाया८ छबीले१ के तेऊ न छीने२ ।
नाम न ठाम३ न गाँव न ज्ञान में,
तेऊजी चुबंक ज्यों सब बीने४॥
बहे जु रहे९ जु गहे अपने कर,
काल के गाल से सो गहि लीने५ ।
हो६ दादूदयाल कृपालु कृपा करि,
रज्जब देख अचंभे७ जु कीने ॥१०॥
जो आशा से मारे मरे हुये और कामादि से जरे हुये थे, उनको भी यदि अपने कृपा कटाक्ष में करे है अर्थात उन पर भी कृपा की है तो वे भी उन ब्रह्म विद्या रूप शोभा से युक्त दादूजी१ की शरण८ में रहकर कामादि से क्षीण२ नहीं हुये हैं ।
जिन अधिकारियों के नाम धाम३ व गाँव ज्ञात न थे उनको भी संसार से ऐसे चुन४ लिया है, जैसे चुबंक रेती से लोह कणों को चुन लेता है ।
जो संसार सरिता में बहे जा रहे थे उनको भी अपने उपदेश रूप हाथ से ग्रहण किया तब वे भी बहने से रुक९ गये हैं और उनको काल के गाल से निकाल कर परमात्मा के स्वरूप के लीन५ किया है ।
हे६ सज्जनों ! देखो, दादू दयाल ने कृपा करके कैसे कैसे आश्चर्य७ के काम करे हैं ।
(क्रमशः)

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