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*दादू काम गाय के दूध सौं, हाड़ चाम सौं नांहि ।*
*इहिं विधि अमृत पीजिये, साधु के मुख मांहि ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १२८~संसारी लोगों के प्रति उपदेश*
*(१)‘आम खाओ’*
आज बृहस्पतिवार है । आश्विन की कृष्णा षष्ठी, २९ अक्टूबर, १८८५ । श्रीरामकृष्ण बीमार हैं । श्यामपुकुर में हैं । डाक्टर सरकार चिकित्सा कर रहे हैं । उनका मकान शाँखारिटोला में है । श्रीरामकृष्ण की हालत प्रति दिन कैसी रहती है, इसकी खबर लेकर डाक्टर के यहाँ रोज आदमी भेजा जाता है ।
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दिन के दस बजे का समय होगा, कलकते में डा. सरकार के मकान पर मास्टर श्रीरामकृष्ण की हालत बताने के लिए आ पहुँचे । डाक्टर - देखो, डा. बिहारी भादुड़ी की एक धुन है ! कहता है, गटे(एक विख्यात जर्मन लेखक) की 'स्पिरिट'(सूक्ष्म शरीर) निकल गयी और गटे स्वयं उसे देख रहा था ! कितने आश्चर्य की बात है !
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मास्टर - श्रीरामकृष्णदेव कहते हैं, इन सब बातों से हमें क्या मतलब ? हम लोग संसार में इसलिए आये हैं कि ईश्वर के पादपद्मों में भक्ति हो । वे कहते हैं, एक आदमी एक बगीचे में आम खाने के लिए गया था । वह एक कागज और पेन्सिल लेकर कितने पेड़ हैं, कितनी डालियाँ हैं, कितने पत्ते हैं, गिन-गिनकर लिखने लगा ।
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बगीचे के एक आदमी से उसकी भेंट हुई । उस आदमी ने पूछा, 'यह तुम क्या कर रहे हो ? - और यहाँ तुम आये भी क्यों ?' तब उसने कहा, 'यहाँ कितने पेड़ हैं, कितनी डालियाँ हैं, कितने पत्ते हैं, यही गिन रहा हूँ । यहाँ आम खाने के लिए आया हूँ ।'
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बगीचे के आदमी ने कहा, ‘आम खाने आये हो तो आम खा जाओ, - कितने पत्ते हैं, कितनी डालियाँ हैं, इन सब बातों से तुम्हें क्या काम ?’
डाक्टर - परमहंस ने सार पदार्थ ग्रहण किया है ।
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फिर डाक्टर अपने होमिओपैथिक अस्पताल के सम्बन्ध में बहुतसी बातें कहने लगे । कितने रोगी रोज आते हैं उनकी तालिका दिखलायी, और कहा, 'पहले पहल डाक्टरों ने मुझे निरुत्साहित कर दिया था । वे लोग अनेक मासिक पत्रों में भी मेरे विरोध में लिखते थे’ – आदि ।
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डाक्टर गाड़ी पर बैठे । साथ मास्टर भी चढ़े । डाक्टर रोगियों को देखते हुए जाने लगे । पहले चोरबागान, फिर माथाघसा गली, फिर पथरियाघट्टा, सब जगह के रोगियों को देखकर श्रीरामकृष्ण को देखने जायेंगे । डाक्टर पथरियाघट्टा में ठाकुरों के एक मकान में गये । वहाँ कुछ देर हो गयी । गाड़ी में आकर फिर गप्प लड़ाने लगे ।
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डाक्टर - इस बाबू के साथ मेरी श्रीरामकृष्णदेव के बारे में बातचीत हुई, थियॉसफी की बातचीत हुई और फिर कर्नल अलकट की । इस बाबू से श्रीरामकृष्णदेव नाराज रहते हैं । इसका कारण जानते हो ? यह बाबू कहता है, ‘मैं सब जानता हूँ ।’
मास्टर - नहीं, नाराज क्यों होंगे ? परन्तु इतना मैंने भी सुना है कि एक बार भेंट हुई थी । श्रीरामकृष्णदेव ईश्वर की बातचीत कर रहे थे । तब इन्होंने कहा था, 'हाँ, यह सब मैं जानता हूँ ।'
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डाक्टर - इस बाबू ने विज्ञान परिषद को ३२५०० रुपये का दान दिया है ।
गाड़ी चलने लगी । बड़ाबाजार होकर लौट रही है । डाक्टर श्रीरामकृष्ण की सेवा के सम्बन्ध में बातचीत करने लगे ।
डाक्टर - तुम लोगों की क्या यह इच्छा है कि इन्हें दक्षिणेश्वर भेज दिया जाय ?
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मास्टर - नहीं, इससे भक्तों को बड़ी असुविधा होगी । कलकत्ते में रहने से हर समय आना-जाना लगा रह सकता है - देखने में सुविधा होती ।
डाक्टर - यहाँ खर्च तो बहुत हो रहा होगा ।
मास्टर - इसके लिए भक्तों को कोई कष्ट नहीं है । वे लोग जिस प्रकार भी सवा हो सके यही चेष्टा कर रहे हैं । खर्च तो यहाँ भी है, वहाँ भी है । वहाँ जाने पर हम लोग हमेशा देख नहीं सकेंगे, यही एक चिन्ता की बात है ।
(क्रमशः)

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