शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४००

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४००)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*४००. सूरातन कसौटी । भंगताल*
*तूँ साहिब मैं सेवक तेरा, भावै सिर दे सूली मेरा ॥टेक॥*
*भावै करवत सिर पर सार, भावै लेकर गरदन मार ॥१॥*
*भावै चहुँ दिशि अग्नि लगाइ, भावै काल दशों दिशि खाइ ॥२॥*
*भावै गिरिवर गगन गिराइ, भावै दरिया माँहि बहाइ ॥३॥*
*भावै कनक कसौटी देहु, दादू सेवक कस कस लेहु ॥४॥*
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आप मेरे स्वामी हैं, और मैं आपका सेवक हूँ । अतः आपका मेरे ऊपर पूर्ण अधिकार हैं । चाहो तो आप मेरे सिर को शूली के अग्रभाग से नष्ट कर दे । चाहे करवत से मेरे शिर को चिरवा कर दो टुकड़े कर दो । या चारों तरफ आग लगा कर जला दें । अथवा तलवार से कटवा के नष्ट कर दें ।
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चारों दिशाओं में आप स्वयं काल बनकर मुझे खा जांये । समुद्र में बहा दें । पर्वत से गिरा के नष्ट कर दें । सुनार की तरह अग्नि में तपाकर नष्ट कर दें । इस तरह नाना कष्ट देकर आप मेरी परीक्षा करके देख लें । मैं उन सब दुःखों को सहन कर लूंगा । कभी भी उन पीड़ाओं से उद्विग्न नहीं होऊंगा । किन्तु आप मुझे अपना सेवक बनाकर मुझे अपना लें ।
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भागवत में कहा है कि –
जब हिरण्यकशिपु ने दैत्यों को इस प्रकार आज्ञा दी तब तीखी दाढ विकराल बदन लाल दाढी मूंछ एवं लाल केशों वाले दैत्य हाथों में त्रिशूल लेकर मारो, काटो इस तरह बड़े जोर से चिल्लाने लगे । प्रह्लादजी चुपचाप बैठे थे । दैत्य उनके मर्म स्थानों में घाव कर रहे थे ।
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उस समय प्रह्लादजी का चित्त परमात्मा में लगा था । जो मन वाणी के अगोचर सर्वात्मा समस्त शक्तियों के आधार एवं परब्रह्म हैं । अतः उनके सारे प्रहार ठीक वैसे ही निष्फल हो गये जैसे भाग्यहीन के बड़े-बड़े उद्योग व्यर्थ होते हैं ।
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हे युधिष्ठिर ! उन शूलों की प्रहार से प्रह्लाद के शरीर पर कोई असर नहीं हुआ, तब हिरण्यकशिपु को बड़ी शंका हुई । अब वह प्रह्लाद को मारने के लिये बड़े हठ से अनेक प्रकार के उपाय करने लगा । उसने बड़े-बड़े मतवाले हाथियों से कुचलवाया, विषधर सर्पों से डसवाया, पुरोहितों से कृत्या उत्पन्न करायी ।
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पहाड़ी की चोटी से नीचे गिरवा दिया । अनेक प्रकार की माया का प्रयोग करवाया । अंधेरी कोटड़ी में बन्द करा दिया विष पिलाया और भोजन बन्द कर दिया । बर्फीली जगह, दहकती हुई आग और समुद्र में बारी-बारी से डलवाया, आंधी में छोड़ दिया । पर्वतों के नीचे दबा दिया ।
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परन्तु इन सब साधनों से अपने पुत्र निष्पाप प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं कर सका । उस समय हिरण्यकशिपु को बड़ी चिन्ता हुई और प्रह्लाद को मारने का कोई उपाय नहीं सूझा । इसी तरह श्रीदादूजी कह रहे हैं कि आप मेरी कसौटी करके देख लें, मैं आपका सच्चा सेवक हूँ या नहीं ? 
(क्रमशः)

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