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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३९३)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*३९३. ज्ञान प्रलय । मदन ताल*
*नाँहीं हीं रे हम नाँहीं हीं रे, सत्यराम सब माँहीं रे ॥टेक॥*
*नाँहीं हीं धरणि अकाशा रे, नाँहीं हीं पवन प्रकाशा रे ।*
*नाँहीं हीं रवि शशि तारा रे, नहीं पावक प्रजारा रे ॥१॥*
*नाँहीं हीं पँच पसारा रे, नाँहीं हीं सब संसारा रे ।*
*नहीं काया जीव हमारा रे, नहीं बाजी कौतिकहारा रे ॥२॥*
*नाँहीं हीं तरवर छाया रे, नहीं पंखी नहीं माया रे ।*
*नाँहीं हीं गिरिवर वासा रे, नाँहीं हीं समंद निवासा रे ॥३॥*
*नाँहीं हीं जल थल खंडा रे, नाँहीं हीं सब ब्रह्मंडा रे ।*
*नाँहीं हीं आदि अनंता रे, दादू राम रहंता रे ॥४॥*
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नामरूपमात्र का अधिष्ठानभूत उत्पत्ति प्रलय का आधार ब्रहमस्वरूप राम ही सत्य है । अन्य सब नामरूपात्मक जगत् मिथ्या है । इसका विवेचन कर रहे हैं श्रीदादूजी महाराज –
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पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, अग्नि ये पंचमहाभूत तथा इनसे उत्पन्न होने वाले पदार्थ सूर्य चन्द्र ये सब सत्य नहीं हैं । क्योंकि ये सब उत्पन्न विनाशशील हैं । ऐसे ही वृक्ष समुदाय तथा उनकी छाया पक्षी पर्वत उस पर रहने वाले पक्षीजीव जन्तु समुद्र और उसमें रहने वाले प्राणी पंचभूत जन्य यह शरीर तथा जीवभाव माया, यह सब सत्य नहीं है ।
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क्योंकि यह जीवभाव भी माया(अज्ञान) की उपाधि से ही भासता है । ईश्वरभाव भी मिथ्या है क्योंकि मायाकृत उपाधि से कल्पित होने के कारण, किन्तु जो आदि अन्त से रहित नित्य शुद्ध-बुद्ध ब्रहमस्वरूप जो राम हैं वह ही सत्य हैं । क्योंकि राम का तीनों कालों में बाध नहीं होता ।
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विवेकचूडामणि में –
जिस प्रकार मिट्टी का कार्य घट आदि हर तरह से मिट्टी रूप है । उसी प्रकार सत् से उत्पन्न हुआ यह सत् स्वरूप जगत् भी सन्मात्र ही है । क्योंकि सत् से परे और कुछ भी नहीं हैं । वहीँ सत्य और स्वयं आत्मा भी है । इसलिये जो शान्त निर्मल और अद्वितीय परब्रह्म हैं वही तुम ही हो ।
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जिस प्रकार स्वप्न में निद्रा दोष से कल्पित देशकाल विषय और ज्ञान आदि सभी मिथ्या है, उसी प्रकार जाग्रत आदि अवस्था में भी यह जगत् अपने अज्ञान का कार्य होने के कारण मिथ्या ही हैं । क्योंकि यह शरीर इन्द्रियां प्राण और अहंकार आदि सभी असत्य हैं । तुम वही परब्रह्म हो, जो शान्त निर्मल और अद्वितीय हैं ।
(क्रमशः)

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