मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

*श्री रज्जबवाणी सवैया ~ ११*

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*दादू सतगुरु सहज में, किया बहु उपकार ।*
*निर्धन धनवंत करि लिया, गुरु मिलिया दातार ॥*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
दादू सो दानी नहीं दृग देखत,
दुर्ग१ दरिद्र को तोरनहारो ।
रंक सौं राणा भये दिशि देखत,
आपद फेरि तक्यो२ नहिं द्वारो ॥
जासु कृपा करि ते भये ईश्वर३,
नाम सो वित्त४ चढ्यो५ कर सारो६ ।
हो रज्जब संत सुखी सब मंगल७,
दादू मिले मन मंगल चारो८ ॥११॥
दादूजी के समान दानी हम अपने नेत्रों से नहीं देख रहे हैं, दादूजी दरिद्रता रूप किले१ को तोड़ने वाले हैं,
जिनकी और दादूजी ने कृपा दृष्टि से देखा है, वे रंक होने पर भी राणा हो गये हैं फिर तो विपत्ति ने उनके द्वार को भी नहीं देखा२ ।
जिन पर भी कृपा करी है, वे समर्थ३ हो गये हैं, जो नाम रूप धन४ है सो सब उनके हाथ आगया५ है ।
हे सज्जनों ! जो भी साधक-संत ज्ञानादि को मांगने७ वाले थे वे सब सुखी हो गये हैं । दादूजी के मिलने से मन में महान् मंगलाचार६ हो रहा है ।
(क्रमशः)

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