सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #३९८

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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३९८)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*३९८. (गुजराती) अनन्य शरण । उदीक्षण ताल*
*महारूं सूं जेहूँ आपूं, ताहरूं छै तूनें थापूं ॥टेक॥*
*सर्व जीव नें तूँ दातार, तैं सिरज्या नें तूँ प्रतिपाल ॥१॥*
*तन धन ताहरो तैं दीधो, हूँ ताहरो नें तैं कीधो ॥२॥*
*सहुवे ताहरो सांचो ये, मैं मैं माहरो झूठो ते ॥३॥*
*दादू नें मन और न आवे, तूँ कर्ता ने तूँ हि जु भावे ॥४॥*
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इस संसार में कुछ भी तो मेरी वस्तु नहीं हैं जो मैं आपको समर्पण करूं । किन्तु जो कुछ भी हैं वह सब आपका ही है । अतः मैं आपकी ही वस्तु आपको समर्पण कर रहा हूँ । सब प्राणियों को सब कुछ आप ही देते हैं । आप ही सब को पैदा करते और पालते हैं । यह शरीर धन आदि सब आपके ही दिये हुए हैं ।
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अतः सब कुछ आपका ही हैं । मैं भी आपका ही हूँ । क्योंकि आपने ही मेरे को बनाया है । अतः यह सत्य ही हैं कि सब कुछ आपका ही है यह मेरा है ऐसा तो केवल मिथ्याभिमान हैं । मैं तो आपको ही कर्ता मानता हूँ किसी और को नहीं ऐसे ही विचार मेरे मन में चलते रहते हैं । आप ही कर्ता और मुझे प्रिय लगते हैं ।.
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किसी ने लिखा है कि –
आप ही माता-पिता, बन्धु, सखा आदि सब मेरे आप ही हैं और विद्या धन भी आप ही हैं अधिक क्या सब देवों के देव ! मेरे तो सब कुछ आप ही हैं ।
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भागवत में –
जो कुछ देखा या सुना जाता हैं वह चाहे भूत से सम्बन्ध रखता हो चाहे वर्तमान से या भविष्य से । स्थावर हो चाहे जंगम हो । महान् हो चाहे छोटा हो । मेरी ऐसी कोई वस्तु नहीं जो भगवान् श्रीकृष्ण से अलग हो, श्रीकृष्ण से अतिरिक्त ऐसी कोई वस्तु नहीं हैं जिसको वस्तु कहा जाय, वास्तव में वे ही सब कुछ हैं । वे ही परमार्थ सत्य हैं ।
(क्रमशः)

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