रविवार, 18 फ़रवरी 2024

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*दादू मेरा वैरी मैं मुवा, मुझे न मारै कोइ ।*
*मैं ही मुझको मारता, मैं मरजीवा होइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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झेन कहानी है, कि टोकियो का गवर्नर एक झेन फकीर को मिलने गया। तो उसने अपना नाम लिखा और साथ में लिखा कि “टोकियो का गवर्नर”। फकीर के पास चिट पहुंची, उसने चिट नीचे फेंक दी और कहा, इस तरह के आदमी को मैं जानता नहीं। और उससे कह दो, वापस लौट जाओ। यहां कोई जगह भी नहीं है, समय भी नहीं है।
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गवर्नर तो बहुत चकित हुआ। इस फकीर के चरणों में बहुत बार आया है। और यह फकीर उसे भलीभांति जानता है। आज क्या हो गया ? लेकिन तभी उसे समझ आ गई बात। उसने “टोकियो का गवर्नर”–जो कार्ड पर लिखा था, उसको काट दिया। फिर से कार्ड भेजा। फकीर ने कहा, “अरे, तुम हो ? भीतर आ जाओ।”
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जो शिष्य कार्ड को लाया था, ले गया था दो बार, वह थोड़ा हैरान हुआ। उसने कहा, यह आदमी वही है, यह कार्ड भी वही है। लेकिन उस फकीर ने कहा, सब बदल गया। इस आदमी का ढंग बदल गया। पहले यह आया था–टोकियो का गवर्नर। टोकियो के गवर्नर से फकीर का क्या लेना-देना ? यह भीतर भी टोकियो के गवर्नर की तरह ही आता तो मुलाकात व्यर्थ थी, बातचीत असार थी। यह पूछता, हम बोलते, वह कहीं मेल नहीं खा सकता था।
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फकीर का गवर्नर से क्या लेना-देना ? अब यह शुद्ध आदमी की तरह आया है, समझ कर आया है, गवर्नर को बाहर छोड़कर आया है। अब कुछ मुलाकात हो सकती है, कोई संवाद हो सकता है। तुम उसी प्रश्न को दोबारा पूछ कर देखना, जो मैंने तुम्हारा उत्तर न दिया हो। और अगर तुमने टोकियो के गवर्नर को छोड़ दिया तो मैं उत्तर दूंगा। और तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते। तुम किसी भी तरह प्रश्न को बनाना, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर टोकियो का गवर्नर पीछे है, मैं उत्तर नहीं दूंगा।
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जिस दिन तुम सरलता से, सहजता से, समस्या को हल करने की आकांक्षा से, सद्भाव से पूछते हो, उस दिन मैं सदा तत्पर हूं। धर्म-संकट कुछ भी नहीं है। चीजें बिलकुल साफ हैं। जैसे तुम्हारे चेहरे पर मैं तुम्हारे क्रोध को पढ़ता हूं, तुम्हारी आंखों में तुम्हारे अहंकार को; ऐसे तुम्हारे हस्ताक्षरों में, तुम्हारे शब्दों में, तुम्हारे वचन के विन्यास में, तुम्हारे प्रश्न के बनाने में भी तुम्हें पढ़ता हूं। वह भी तुम्हारा है। तुम उसमें पूरे-पूरे मेरे सामने उपस्थित हो जाते हो।
ओशो

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