मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४०२

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४०२)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*४०२. हित उपदेश । खेमटा ताल*
*हाजिरां हजूर सांई,*
*है हरि नेड़ा दूर नांही ॥टेक॥*
*मनी मेट महल में पावै,*
*काहे खोजन दूरि जावै ॥१॥*
*हिर्स न होइ, गुस्सा सब खाइ,*
*तातैं संइयां दूर न जाइ ॥२॥*
*दुई दूर दरोग न होइ,*
*मालिक मन में देखै सोइ ॥३॥*
*अरि ये पँच शोध सब मारै,*
*तब दादू देखै निकटि विचारै ॥४॥*

मैं प्रभु के पास ही रहता हूँ, और प्रभु भी व्यापक होने से मेरे पास ही हैं । क्योंकि श्रुति में कहा है कि ज्ञानियों के लिये प्रभु अति समीप ही हैं और अज्ञानियों के लिये बहुत दूर हैं । अतः ज्ञानियों को प्रभु को खोजने की आवश्यकता नहीं किन्तु अपने अभिमान को दूर करो तो प्रभु आपके हृदय में ही मिल जायेंगे । 
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सत्पुरुषों ने भोगों को छोड़ा और काम क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय पाई अतः उनसे हरि कभी दूर नहीं होते । जिसका द्वैतभाव नष्ट हो गया और मिथ्या व्यवहार नहीं करता वह प्रभु को अपने हृदय में ही देख लेता हैं । जो पांचों इन्द्रियों को जीतकर कामक्रोध आदि शत्रुओं पर प्रहार करता हैं वह ब्रह्मविचार द्वारा परमात्मा को अपने आपस ही देखता है ।
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विवेकचूडामणि में –
अजर अमर आभास शून्य वस्तुस्वरूप निश्चल जलराशि के समान नाम रूप से रहित गुणों के विकार से शून्य नित्य शान्तस्वरूप और अद्वितीय पूर्ण ब्रह्म का समाधि अवस्था में विद्वान अनुभव करता है । अपने स्वरूप में चित्त को स्थिर करके अखण्ड ऐश्वर्य संपन्न आत्मा का साक्षात्कार करो । संसार गन्धयुक्त बन्धन को काट डालो और यत्नपूर्वक अपने मनुष्य जन्म को सफल करो ।
(क्रमशः) 

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