🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू नेड़ा परम पद, साधु संगति होइ ।*
*दादू सहजैं पाइये, साबित सन्मुख सोइ ॥*
================
सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
सवैया -
एक१ के एक२ किये जु अनेक सौं,
पेखि पुरातन शोधि सगाई३ ।
अनन्त अनीति उठाय उर हु सौं जी,
आतम राम के पंख चलाई ॥
नारी पुरुष को नेह रह्यो६ जग,
मानो हनूत४ ने हाक सुनाई ।
हो रज्जब दादू के कामन की कछु७,
व्योर५ विचार कही नहिं जाई ॥८॥
जीव ब्रह्म के पुराने सम्बन्ध३ को खोजकर अनेक जीवों को अद्वैत१ ब्रह्म के परायण करके अद्वैत२ ब्रह्म रूप ही कर दिया है ।
हृदयों से अनन्त अनीति उठाकर जीवात्माओं को राम की प्राप्ति के मार्ग में चलाया है ।
सिंहल द्वीप में हनुमान४ अपनी हाक सुनाकर नरों को नपुसंक कर देते हैं, तब नारी पुरुष का कामुक प्रेम नहीं रहता किंतु दादूजी के उपदेश से नपुसंक हुए बिना ही नारी पुरुष का कामुक प्रेम रुक६ जाता है ।
हे सज्जनों ! दादूजी के अदभुत७ कार्यों के विचार पूर्वक विवरण५ की बात नहीं कही जा सकती ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें