शुक्रवार, 1 मार्च 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४०३

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४०३)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*४०३. खेमटा ताल*
*राम रमत है देखे न कोइ,*
*जो देखे सो पावन होइ ॥टेक॥*
*बाहिर भीतर नेड़ा न दूर,*
*स्वामी सकल रह्या भरपूर ॥१॥*
*जहं देखूं तहँ दूसर नांहि,*
*सब घट राम समाना मांहि ॥२॥*
*जहाँ जाऊँ तहँ सोई साथ,*
*पूर रह्या हरि त्रिभुवन नाथ ॥३॥*
*दादू हरि देखे सुख होहि,*
*निशदिन निरखन दीजे मोहि ॥४॥*
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श्रीराम तो सब जगह रमण कर रहे हैं । परन्तु उनको कोई देखता ही नहीं । जो उनको सर्व व्यापक रूप से देखता है वह पाप रहित होकर दूसरों को भी पावन कर देता है । परमात्मा को न बाहर भीतर कह सकते हैं न समीप न दूर कह सकते । वह सर्वव्यापक होने से सर्वत्र परिपूर्ण है ।
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मैं तो जहां कहीं भी देखता हूँ वहां पर राम को ही देखता हूं । अन्य को नहीं । क्योंकि वह राम तो सर्वभूतों में स्थित है । जहां कहीं जाता हूँ तो उसको साथ ही देखता हूँ । वह त्रिलोकी के नाथ सर्वत्र विराज रहे हैं । जब मैं अपने प्रभु को देखता हूँ तो मैं पूर्ण आनन्द में डूब जाता हूँ । हे प्रभो ! ऐसी कृपा करो जिससे मैं दिन रात आपके स्वरूप का ही साक्षात्कार करता रहूं । आप मेरे से गुप्त होकर मत रहो ।
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विवेकचूडामणि में कहा है कि –
सेना के बीच में रहने वाले राजा के समान भूतों के संघात रूप शरीर के मध्य में स्थित इस स्वयं प्रकाश विशुद्ध तत्त्व को जानकर सदा तन्मय भाव से स्वस्वरूप में स्थित रहते हुए संपूर्ण दृश्यवर्ग को उस ब्रह्म में लीन करो । वह सत् से असत् से विलक्षण अद्वितीय सत्य परब्रह्म बुद्धिरूप गुहा में विराजमान हैं । जो इस गुहा में उससे एक रूप होकर रहता हैं हे वत्स ! उसका फिर शरीर रूपी कन्दरा में प्रवेश नहीं होता । अर्थात् फिर जन्म नहीं होता ।
(क्रमशः)

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