रविवार, 10 मार्च 2024

घणी घात करै लुड़खड़ी

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*दादू कथनी और कुछ, करणी करैं कछु और ।*
*तिन थैं मेरा जीव डरै, जिनके ठीक न ठौर ॥*
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*दुरजन पारिष कौ अंग ॥*
घणी घात करै लुड़खड़ी, बोलै बाणी मीठी ।
बषनां कहै बघेरा की मति, मनिखाँ माहीं दीठी ॥१॥
दुर्जन = दुष्ट मनुष्यों के मन में तो दूसरों को येन-केन-प्रकारेण घात = धोखा देने की नियत रहती है किन्तु ऊपर से = मुख से, वे मीठी-मीठी बातें करते हैं और लुड़खड़ी = आचरण में नम्रता दर्शित करते हैं । 
वस्तुतः ऐसे मनुष्य बघेरे की सी बुद्धि और आचरण वाले होते हैं जो अपने शिकार पर धोखा करने के लिये बहुधा नम्र बनकर लुड़खड़ी = पैर चाटना आदि करने लग जाता है या छिपकर अचानक वार करता है । 
बषनांजी कहते हैं, कलियुग के अधिकांश स्वार्थांध मनुष्य बघेरे जैसी बुद्धि और आचरण वाले हो गये हैं । एक सुभाषित है “नमन नमन मैं फरक है, नमते चतुर सुजान । नीचा हो ऊँचे चढ़ै, चीता चोर कमान ॥”
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सजन मिल्या दुरजन गलि लगि । 
बारैं सीतल पणि माहीं आगि ॥
अरि कड़वौ सजन माहीं मिठौ । 
बखनैं भाव दहूँ कौ दीठौ ॥२॥
दुर्जन व्यक्ति, सजन=सज्जन व्यक्ति के मिलने पर उससे मिलता तो गले लगकर है, ऊपर से वह सीतल = शांत = सज्जन सा भी लगता है किन्तु अंदर उसके धोखा देने रूपी अग्नि भभकती रहती है । वस्तुतः दुर्जन का हृदय कड़वौ = कठोर = दुष्ट होता है जबकि सज्जन का दयाद्र, सहानुभूति और सद्गुणों से परिपूरित होता है । बखनांजी कहते हैं, दोनों के ही भावों को विचार पर परखना चाहिये ॥२॥
इति चितकपटी कौ अंग संपूर्ण ॥अंग ८५॥साषी१५२॥
(क्रमशः)

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