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*तहँ वचन अमोलक सब ही सार,*
*तहँ बरतै लीला अति अपार ।*
*उमंग देइ तब मेरे भाग,*
*तिहि तरुवर फल अमर लाग ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*गोविंदचंद हिं प्रात नवै१ पुनि,*
*केशव भोग समै नंद ग्रामें ।*
*गोवरधन प्रियदह२ ह्वै करि,*
*आत वृन्दावन चातुर यामें ॥*
*पावन कुंड रहे दिन तीन सु,*
*भूख सही पय ल्यावत श्यामें ।*
*माँगत है जल पात नहीं पल,*
*रात कहा यह मैं करि कामें ॥३८८॥*
आप प्रातः काल वृन्दावन में श्रीगोविन्ददेवजी की मंगला आरती का दर्शन करके तथा प्रणाम१ करके श्रीकेशवदेवजी को श्रृंगार आरती का दर्शन करते थे और राज भोग के समय नन्दग्राम में पहुँच जाते थे ।
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फिर गोवर्द्धन और राधा कुंड२ होते हुये चौथे पहर में वृन्दावन आ जाते थे ।
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एक समय पावन कुण्ड-मान सरोवर पर दैवयोग से तीन दिन भूखे ही रह गये थे । तब भक्तवत्सल भगवान् श्यामसुन्दरजी सुन्दर मानव का रूप बना के दूध लेकर आये और आपको पान कराया । आपको वह रूप अति प्रिय लगा,
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इससे आपने उस मानव से कहा- थोड़ा जल भी पिला दो । किन्तु भगवान् ने एक पल(पाँच तोला) भी नहीं पिलाया । वहाँ से चल दिये । उस मानव के वियोग से चतुरा नागाजी को बड़ा दुःख हुआ । तब रात्रि को स्वप्न में भगवान् ने कहा- "यह दूध पिलाने का काम मैं ही करके आया था ।"
(क्रमशः)
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