रविवार, 10 मार्च 2024

क्या जन्मान्तर है ?

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*चौदह तीनों लोक सब, ठूंगे श्‍वासै श्‍वास ।*
*दादू साधू सब जरैं, सतगुरु के विश्‍वास ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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श्रीयुत श्याम बसु, डा. दोकड़ी तथा और भी दो-एक आदमी आये हुए हैं । अब श्रीरामकृष्ण उन लोगों के साथ बातचीत कर रहे हैं ।
श्याम बसु – अहा ! उस दिन वह बात जो आपने कही थी कितनी सुन्दर है !
श्रीरामकृष्ण (हँसकर) - वह कौनसी बात है ?
श्याम बसु - वहीं, ज्ञान और अज्ञान से पार हो जाने पर क्या रहता है, इसके सम्बन्ध में आपने जो कुछ कहा था ।
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श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - वह विज्ञान है । और अनेक प्रकार के ज्ञान का नाम अज्ञान है । सर्वभूतों में ईश्वर का वास है, इसका नाम है ज्ञान । विशेष रूप से जानने का नाम है विज्ञान । ईश्वर के साथ आलाप, उनमें आत्मीयों जैसा भाव अगर हो तो वह विज्ञान है ।
"लकड़ी में आग है, अग्नितत्त्व है, इस बोध का नाम है ज्ञान । लकड़ी जलाकर रोटियाँ सेंक कर खाना और खाकर हृष्ट-पुष्ट होना यह है विज्ञान ।
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श्याम बसु - (सहास्य) - और वह काँटों की बात !
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - हाँ, जैसे पैर में काँटा लग जाने से उसे निकालने के लिए एक और काँटा ले आया जाता है । फिर पैर में गड़े हुए काँटे को निकालकर दोनों ही काँटे फेंक दिये जाते हैं । उसी तरह अज्ञान-काँटे को निकालने के लिए ज्ञानकाँटे की खोज की जाती है । अज्ञान-नाश के बाद फिर ज्ञान और अज्ञान दोनों को फेंक देना होता है । तब विज्ञान की अवस्था आती है ।
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श्रीरामकृष्ण श्याम बसु पर प्रसन्न हुए हैं । श्याम बसु की उम्र अधिक हो गयी
है, अब उनकी इच्छा है, कुछ दिन ईश्वर-चिन्तन करें । श्रीरामकृष्णदेव का
नाम सुनकर यहाँ आये हुए हैं । इसके पहले वे एक दिन और आये थे ।
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श्रीरामकृष्ण - (श्याम बसु से) – विषय-चर्चा बिलकुल छोड़ देना । ईश्वरीय बातचीत छोड़ और किसी विषय की बातचीत न करना । विषयी आदमी को देखकर धीरे धीरे वहाँ से हट जाना । इतने दिन संसार करके तुमने देखा तो, सब खोखलापन है । ईश्वर ही वस्तु है, और सब अवस्तु । ईश्वर ही सत्य हैं, और सब दो दिन के लिए है । संसार में है क्या ? बस गुठली चाटना ही है । उसे चाटने की इच्छा तो होती है, परन्तु गुठली में है क्या ?
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श्याम बसु - जी हाँ, आप सच कहते हैं ।
श्रीरामकृष्ण - बहुत दिनों तक लगातार तुम विषय-कार्य करते रहे हो, अतएव इस समय इस गुल-गपाड़े में ध्यान और ईश्वर की चिन्ता न होगी । जरा निर्जन में रहना चाहिए । निर्जन के बिना मन स्थिर न होगा, इसीलिए घर से कुछ दूर पर ध्यान करने का स्थान तैयार करना चाहिए ।
श्यामबाबू कुछ देर के लिए चुप हो रहे, जैसे कुछ सोचते हों ।
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श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - और देखो, तुम्हारे दाँत भी सब गिर गये हैं, अब दुर्गा-पूजा के लिए इतना उत्साह क्यों ? (सब हँसते हैं)
“एक ने एक से पूछा, 'क्यों जी, तुम दुर्गा-पूजा अब क्यों नहीं करते ?’ उस आदमी ने उत्तर देते हुए कहा, 'भाई, अब दाँत नहीं रह गये, माँस खाने की शक्ति अब नहीं रह गयी ।’”
श्याम बसु – अहा ! बातों में मानो मिश्री घुली हुई है !
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श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - इस संसार में बालू और शक्कर एक साथ मिले हुए हैं । चींटी की तरह बालू का त्याग करके चीनी को निकाल लेना चाहिए । जो चीनी ले सकता है, वही चतुर है । उनकी चिन्ता करने के लिए एक निर्जन स्थान ठीक करो - ध्यान करने की जगह तुम एक बार करो तो । मैं भी आऊँगा ।
सब लोग कुछ देर के लिए चुप हैं ।
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श्याम वसु – महाराज, क्या जन्मान्तर है ? क्या फिर जन्म लेना होगा ?
श्रीरामकृष्ण - ईश्वर से कहो, अन्तर से उन्हें पुकारो, वे सुझा देते हैं, सुझा देंगे । यदु मल्लिक से बातचीत करो तो वह बता देगा कि उसके कितने मकान हैं और कितने रुपयों के कम्पनी के कागज हैं । पहले से इन सब बातों को जानने की चेष्टा करना ठीक नहीं । पहले ईश्वर को प्राप्त करो, फिर जो कुछ जानने की तुम्हारी इच्छा होगी, वे तुम्हें बतला देंगे ।
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श्याम बसु - महाराज, मनुष्य संसार में रहकर न जाने कितने अन्याय, कितने पापकर्म करता है । क्या वह मनुष्य ईश्वर को पा सकता है ?
श्रीरामकृष्ण – देह-त्याग से पहले अगर कोई ईश्वर दर्शन के लिए साधना करे और साधना करते हुए, ईश्वर को पुकारते हुए यदि देह का त्याग हो, तो पाप उसे कब स्पर्श कर सकेगा ? हाथी का स्वभाव है कि नहला देने के बाद भी वह देह पर धूल डालने लगता है, परन्तु महावत अगर नहलाकर उसे फीलखाने में बाँध दे, तो फिर हाथी देह पर धूल नहीं डाल सकता ।
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खुद को कठिन पीड़ा होते हुए भी अहैतुक कृपासिन्धु श्रीरामकृष्ण जीवों के दुःख से कातर हो उठा करते हैं; दिवानिशि जीवों की मंगल-कामना किया करते हैं । यह देखकर भक्तगण निर्वाक् हैं । श्रीरामकृष्ण श्याम बसु को हिम्मत बँधा रहे हैं - "ईश्वर को पुकारते हुए अगर देह का नाश हो तो फिर पाप स्पर्श नहीं कर सकता ।"
(क्रमशः)

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