शनिवार, 2 मार्च 2024

प्रेम का आकर्षण

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*कबहूँ नांहि न तुम तन चितवत,*
*माया मोह परे ।*
*दादू तुम तज जाइ गुसाँई,*
*विषया मांहि जरे, हो गुसाँई ॥*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
श्रीरामकृष्ण - (डाक्टर से) - देखो, यहाँ के लिए (स्वयं को इंगित करके) तुम्हारे हृदय में कुछ प्रेम का आकर्षण है । तुमने मुझसे कहा था कि तुम मुझे चाहते हो ।
डाक्टर - तुम प्रकृति के शिशु हो, इसीलिए इतना कहता हूँ । लोग पैरों पर हाथ रखकर नमस्कार करते हैं, इससे मुझे कष्ट होता है । मैं सोचता हूँ, ऐसे भले आदमी को भी ये लोग बिगाड़ रहे हैं । केशव सेन को उसके चेलों ने ऐसे ही बिगाड़ा था ।
.
तुम्हें यह बतलाता हूँ, सुनो –
श्रीरामकृष्ण - तुम्हारी बात मैं क्या सुनूँ ? तुम लोभी, कामी और अहंकारी हो ।
भादुड़ी - (डाक्टर से) - अर्थात् तुममें जीवत्व है । जीवों का धर्म यही है – रुपया-पैसा, मान-मर्यादा का लोभ, काम और अहंकार । सब जीवों का यही धर्म है ।
.
डाक्टर - ऐसा अगर कहो तो बस तुम्हारे गले की बीमारी देखकर चला जाया करूँगा । दूसरी बातों की आवश्यकता न रह जायगी । तर्क अगर करना होगा तो ठीक ही ठीक कहूँगा ।
सब चुप हैं । कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण फिर भादुड़ी से बातचीत कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - बात यह है कि ये(डा. सरकार) इस समय नेति-नेति करके अनुलोम में जा रहे हैं । जब विलोम में आयेंगे तब सब मानेंगे ।
.
"केले के खोल निकालते रहने से उसका माझा मिलता है ।
"खोल एक अलग चीज है और माझा एक अलग चीज । न माझा को कोई खोल कह सकता है और न खोल को माझा, परन्तु अन्त में आदमी देखता है, खोल का ही माझा है और माझे का ही खोल । चौबीसों तत्त्व वे ही हुए हैं और मनुष्य भी वे ही हुए हैं ।
.
(डाक्टर से) भक्त तीन तरह के हैं - अधम भक्त, मध्यम भक्त और उत्तम भक्त । अधम भक्त कहता है, 'ईश्वर वहाँ दूर हैं ; सृष्टि अलग है, ईश्वर अलग है ।' मध्यम भक्त कहता है, 'वे अन्तर्यामी हैं, वे हृदय में हैं ।' वह हृदय के भीतर ईश्वर को देखता है । उत्तम भक्त देखता है, वे ही यह सब हुए हैं, चौबीसों तत्त्व वे ही हुए हैं । वह देखता है, ईश्वर ऊर्ध्व और अधोभाग में पूर्ण रूप से विराजमान हैं ।
.
"तुम गीता, भागवत, वेदान्त आदि पढ़ो तो सब समझ सकोगे ।
"क्या ईश्वर इस सृष्टि में नहीं हैं ?"
डाक्टर - नहीं, वे सब जगह हैं, और इसीलिए उनकी खोज हो नहीं सकती ।
कुछ देर बाद दूसरी बातें होने लगीं । श्रीरामकृष्ण को सदा ही ईश्वरभाव हुआ करता है, इससे बीमारी के बढ़ने की सम्भावना है ।
.
डाक्टर - (श्रीरामकृष्ण से) - भाव को दबा रखिये । मुझे भी बहुत भाव होता है । तुमसे भी अधिक नाच सकता हूँ ।
छोटे नरेन्द्र - (हँसकर) - भाव अगर कुछ और बढ़ जाय तब आप क्या करेंगे ?
डाक्टर - उसके दबाने की मेरी शक्ति भी साथ ही बढ़ती जायगी ।
श्रीरामकृष्ण तथा मास्टर - अभी आप वैसा कह सकते हैं ।
.
मास्टर - भाव होने पर क्या आप कह सकते हैं ?
कुछ देर बाद रुपये-पैसे की बातचीत होने लगी ।
श्रीरामकृष्ण - (डाक्टर से) - मैं तो इसके बारे में सोचता ही नहीं हूँ; और यह बात तुम भी जानते हो । क्यों ठीक है न ? यह ढोंग नहीं है ।
डाक्टर - मेरा भी यही हाल है । आपकी बात तो अलग । मेरा रुपयों का सन्दूक तो खुला ही पड़ा रहता है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें