गुरुवार, 21 मार्च 2024

*श्री रज्जबवाणी सवैया ~ १५*

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*दादू मेरा एक मुख, कीर्ति अनन्त अपार ।*
*गुण केते परिमित नहीं, रहे विचार विचार ॥*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
बीनती कौन करे तुम सेती१ जु,
कौन के भाव भयो तुम लायक२ ।
कौन कला गुरुदेव बुलाइये,
कौन के मुख बन्यो ऐसे बायक३ ॥
कौन की प्रीति प्रचंड४ भई उर,
जा परि गौन५ करे गछ६ नायक७ ।
रज्जब रंक रिझावे कहा कहि,
आप सौं जानि चलो८ सुखदायक ॥१५॥
गुरुदेव ! आप से१ कौन विनय करे, किसके हृदय में आप को प्रसन्न करने योग्य२ भाव उत्पन्न हुआ है ?
कौन सी कला से गुरुदेव को बुलावें ? किस के मुख में ऐसा वचन३ बना है ?
जिससे सुनने से गुरुदेव पधार जाँय । किसके हृदय में तीव्र४ प्रीति उत्पन्न हुई है ? जिससे प्रसन्न होकर चलने६ वालों में श्रेष्ठ७ दादूजी हमारी गमन५ कर सकें ।
मैं रंक आपको क्या कहकर प्रसन्न करूं ? सुखदाता गुरुदेव ! मेरे हृदय को जान कर आपके दयालु स्वभाव से ही मेरी और गमन८ करें ।
(क्रमशः)

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