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*साधु जन क्रीड़ा करैं, सदा सुखी तिहिं गाँव ।*
*चलु दादू उस ठौर की, मैं बलिहारी जाँव ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*काम नहीं जल दूध पिवो भल,*
*ज्यो व्रज में प्रभु आयसु दीन्ही ।*
*ये व्रज के जन लेवन देत न,*
*तो बरजै नहिं यूं सुन लीन्ही ॥*
*ल्यावत धामन धामन से फिर,*
*श्याम कहा सु प्रतीत हु चीन्ही रै ।*
*जाय छिपावत हेरहि ल्यावत,*
*बात सबै जन की रस भींनी ॥३८९॥*
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"तुमने जल माँगा था किन्तु अब जल से क्या काम है ? अर्थात् जल की क्या आवश्यकता है ? व्रज में रहो और व्रजवासियों के घरों में जाकर दूध पिया करो ।"
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प्रभु की उक्त आज्ञा सुनकर स्वप्न में आपने विनय की- "ये ब्रज के लोग दूध नहीं लेने देते हैं ।" (दूध के लिये यशोदा ने आपको भी गोद से उतार दिया था) भगवान् ने कहा- "तुम व्रज में मेरी आज्ञा सुना कर दूध लो, मिलेगा । तुमको नहीं नटेंगे ।"
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इस प्रकार प्रभु की आज्ञा स्वप्न में सुनकर हृदय में धारण कर ली । फिर ब्रजवासियों को कह दिया कि - "मुझे नन्दकुमार की आज्ञा है, तुम दूध दो ।" फिर स्थान स्थान से दूध लाने लगे । कोई नहीं देता था तो उसका सब दूध फट जाता था वा कीड़े पड़ जाते थे । इससे सबको विश्वास हो गया और सबने जान लिया कि इनको श्यामसुन्दर की आज्ञा है ।
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कोई हँसी से दूध छिपा देती थी तो आप स्वयं नागाजी हेर लाते थे । तब वह बड़ी प्रसन्न होती थी । इस प्रकार भक्त चतुरा नागाजी की सभी कथाएं रसपूर्ण हैं ।
(क्रमशः)
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