शनिवार, 23 मार्च 2024

*४२. बेली कौ अंग १/४*

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*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४२. बेली कौ अंग १/४*
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कहि जगजीवन प्रेम जल, बीज नांम गुर सीर२ ।
आतम बेली सींचिये, व्रिद्धि करै बिन नीर ॥१॥
(२. सीर=साथी, सहयोगी)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रेम जल व गुरु नाम स्मरण का बीज का मेल है । ऐसी बेल बिना जल के भी वृद्धि को प्राप्त होती है ।
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आतम बेली बिसतरै, वपु मंहि निकट निवास ।
प्रेम नीर सौं सींचिये, सु कहि जगजीवनदास ॥२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आत्मा रुपी बेल का विस्तार शरीर के निकट ही है । इसे प्रेम जल से सींचिये ऐसा संत कहते हैं ।
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आतम बेली रांम जल, सतगुरु सींचनहार ।
कहि जगजीवन फूल फल, व्रिद्धि करौ बिसतार ॥३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आत्मा रुपी बेल राम नाम स्मरण जल से सिंचित हो व सिंचाई कर्ता गुरु महाराज हो तो बेल खूब फलती फूलती व वृद्धि कर विस्तृत होती है ।
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कहि जगजीवन गगन मंहि, धरणि३ कूप खनि४ खोज ।
हरि जल अम्रित नीकसै५, सेझै६ स्वांति७ सरोज ॥४॥
(३. धरणि=पृथ्वी) (४. खनि=गड्ढा) (५. नीकसै=निकालता है) 
(६. सेझै=स्वाभाविक स्त्रोत) (७. स्वाति=इस नाम का नक्षत्र)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे जीव गगन मण्डल में धरा का कूप खोज कर खनन कर यह उच्च ज्ञान को इंगित करता है जिसके प्राप्त होने से जीव मृत्यु भय से निकल अमरत्व को प्राप्त होता है । और जैसे स्वाति नक्षत्र में मोती व स्वाभाविक झरने से कमल खिलते हैं ।
(क्रमशः)

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