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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४०७)*
*राग ललित ॥२५॥**(गायन समय प्रातः ३ से ६)*
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*४०७. पराभक्ति । त्रिताल*
*राम तूँ मोरा हौं तोरा, पाइन परत निहोरा ॥टेक॥*
*एकै संगैं वासा, तुम ठाकुर हम दासा ॥१॥*
*तन मन तुम कौं देबा, तेज पुंज हम लेबा ॥२॥*
*रस माँही रस होइबा, ज्योति स्वरूपी जोइबा ॥३॥*
*ब्रह्म जीव का मेला, दादू नूर अकेला ॥४॥*
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हे राम ! आप मेरे हैं, और मैं आपका हूँ, मैं आपके चरणकमलों में पड़कर प्रार्थना करता हूँ कि मैं तो आपका दास हूँ आप मेरे स्वामी अतः आपका और मेरा एक जगह ही निवास होना चाहिये । मैं अपने शरीर मन बुद्धि को आपके समर्पण करके आपके तेजपुंजमय रूप को प्राप्त कर लूं ।
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जैसे रस में रस के मिल जाने पर दोनों एकरस हो जाते हैं । उसी प्रकार मैं भी अपनी आत्मा को आपके स्वरूप में लीन करके निरन्तर ज्योतिस्वरूप आपको ही देखा करूं । अर्थात् आप और मैं एक हो जावें ऐसी कृपा कीजिये ।
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वराहोपनिषद् में कहा है कि – चेतन स्वरूप, सर्वव्यापक, नित्य, परिपूर्ण, सुखमय, द्वैतरहित, साक्षात् ब्रह्म ही सब कुछ हैं और दूसरा कुछ भी नहीं हैं । ब्रह्मज्ञानियों की यही स्थिति रहा करती हैं । वर्णाश्रम से रहित सबके साक्षी आत्मा को ब्रह्मस्वरूप से जान कर यह जीव ब्रह्म हो जाता हैं ।
(क्रमशः)
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