बुधवार, 27 मार्च 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४०८

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४०८)*
*राग ललित ॥२५॥**(गायन समय प्रातः ३ से ६)*
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*४०८. (मराठी) अनन्य शरण । त्रिताल*
*मेरे गृह आव हो गुरु मेरा, मैं बालक सेवक तेरा ॥टेक॥*
*मात पिता तूँ अम्हचा स्वामी, देव हमारे अंतरजामी ॥१॥*
*अम्हचा सज्जन अम्हचा बँधू, प्राण हमारे अम्हचा जिन्दू ॥२॥*
*अम्हचा प्रीतम अम्हचा मेला, अम्हची जीवन आप अकेला ॥३॥*
*अम्हचा साथी संग सनेही, राम बिना दुख दादू देही ॥४॥*

हे मेरे गुरुदेव राम ! मेरे इस शुद्ध अन्तःकरण घर में पधारिये । मैं तो आपका बालक सेवक हूँ । हे अंतर्यामिन् ! आप ही मेरे माता-पिता, स्वामी, देवता, सज्जन, बन्धुवर्ग जीव देने वाले प्राणप्रियतम सहायक सदा साथ रहने वाले संगी हैं । आपके बिना मेरा जीवात्मा दुःखी हो रहा हैं । अतः आप मेरे अन्तःकरण में पधारिये । 
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दामोदरअष्टक में लिखा है कि –
हे देव हे दामोदर ! हे अनन्त ! हे विष्णो ! तुम्हें प्रणाम हैं । हे प्रभो ! मुझ पर प्रसन्न हो जावो । एवं दुःख समूहरूप समुद्र में डूबे हुए मुझ अतिदीन और अज्ञ प्राणी को कृपादृष्टि की वर्षा से निहाल कर दो । भगवान् को आत्म समर्पण करने से निश्चय ही तटीयता(मैं तेरा हूँ) इस विश्वास की प्राप्ति होती हैं । 
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यदि मैं भगवान् का हूं इस सुदृढ़ विश्वास के बिना केवल आश्रय ग्रहण किया गया हो तो भगवान ही मेरे आश्रय हैं और मैं भगवान् का हूँ इस भाव अनुभूति के लिये स्वधर्म का पालन करते हुए कुछ साधन करें । नहीं तो दुगना भार चढ़ जाता हैं ।  
(क्रमशः)

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