बुधवार, 27 मार्च 2024

बषनां बहिल भैंसि नैं मूरिख

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*कामधेनु कै पटंतरै, करै काठ की गाइ ।*
*दादु दूध दूझै नहीं, मूरख देइ बहाइ ॥*
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*साकार सेवा अनादर कौ अंग ॥*
मोटी देखि बहुत मन मान्या, दुहताँ दूध न आवै ।
बषनां बहिल भैंसि नैं मूरिख, क्यांहनैं पसर चरावै ॥१॥
मोटी भैंस को देखकर खरीददार का मन आनंदमय­­­­ हो गया कि यह स्वस्थ भैंस प्रभूत मात्रा में दूध देगी लेकिन जब उसे दुहा तब उससे जरा सा भी दूध प्राप्त न हुआ ।
बषनांजी कहते हैं, ऐसी बहिल भैंसि = मोटी-ताजी भैंस को क्यों अच्छी मात्रा में बढ़िया किस्म का चारा प्रसन्न होकर खिलाते हो जो छँटाक भर भी दूध न दे । इसी प्रकार विनाशी अवतारों की क्यों सेवा-पूजा करके धन और समय बर्बाद करते हो ! अविनाशी, आदि, अनादि परमात्मा का स्मरण-चिंतन करो जिससे कि तुम भी तद्रूप हो सको ॥१॥
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*श्रीदादू बचन प्रमाण ॥*
कामधेनु कै पटंतरै, करै काठ की गाइ ।
दादु दूध दूझै नहीं, मूरख देइ बहाइ ॥१२/१४३॥
कोई कामधेनु गाय की नकल पर उसके समान ही काष्ठ की गाय बनाता है और वह काष्ठ की निर्जीव गाय से दूध दुहना चाहता है तो काठ की गाय उसे कभी भी दूध नहीं देगी । अंततः वह मूर्ख उस काठ की गाय को फैंक देता है, त्याग देता है ।
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ब्रह्मा का बेद विष्णु की मूरति, पूजै सब संसारा ।
महादेव की सेवा लागैं, कहाँ है सिरजन हारा ॥१२/१३७॥
ब्रह्मा के वेदों के अनुसार सकामकर्मों का अनुष्ठान, विष्णु की मूर्ति और महादेव शंकर की संसार के सभी प्राणी पूजा करते हैं किन्तु हमें यह तो बताइये कि इनका सृजनकर्त्ता कहाँ है ? ॥१२/१३७॥
साकार सेवा तिरस्कार कौ अंग संपूर्ण ॥अंग ८८॥साषी १५८॥
(क्रमशः)

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