शुक्रवार, 29 मार्च 2024

*कन्हरजी*

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*जे जन हरि के रंग रंगे, सो रंग कदे न जाइ ।*
*सदा सुरंगे संत जन, रंग में रहे समाइ ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*कन्हरजी*
*छप्पय-*
*आत्माराम कन्हर दयाल, बूड़े विपुल१ विराज ही ।*
*रहन सहनता गहर२, महर३ गुन शुभ के आगर ।*
*अडिग भजन गोपाल, धारि द्विज कुल में नागर४ ।*
*संत प्रभू मय सकल, मान उर प्रीति हुलासै५ ।*
*वस्त्र सु भोजन पान, मान दे सब आश्वासै ।*
*शिष सुठ६ शोभूराम का, आप बन्या पुनि पाज७ ही ।*
*आत्माराम कन्हर दयाल, बूड़े विपुल विराज ही ॥२८५॥*
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कन्हरजी अधिकतर१ बूडे-सारण ग्राम में विराजते थे । आप बड़े ही दयालु और आत्मा में ही रमण करने वाले ज्ञानी भक्त थे । बहुत२ ही सहनशील, परम कृपालु३ और शुभ गुणों की तो मानो खान ही थे । गोपालजी को भजन द्वारा सदा हृदय में अडिग रूप से धारण किये रहते थे अर्थात् सदा गोपालजी का ध्यान करते थे ।
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ब्राह्मण कुल में जन्मे थे और अति चतुर४ थे । सब संतों को प्रभु रूप ही मान कर हृदय की प्रीति से दर्शन करके प्रसन्न५ होते थे । वस्त्र, सुन्दर, भोजन, पीने योग्य पदार्थ और सन्मान दे करके सबको आश्वासन देते थे । आप शोभूरामजी के श्रेष्ठ६ शिष्य थे और स्वयं संसार सागर से प्राणियों को पार करने के लिए सेतु७ बने हुये थे ॥२८५॥
(क्रमशः)

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