शुक्रवार, 29 मार्च 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १/४*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १/४*
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को जांणै का की बसी६,चली७ आज की रात ।
जगजीवन धरती सकल, फिरि आई परभात८ ॥१॥
(६. बसी=सुखमय हुई) (७. चली=व्यर्थ नष्ट हुई) {८. परभात=प्रभात(प्रातः काल)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जाने इस संसार में किसकी रात्रि सुखमय हुई और किसकी व्यर्थ नष्ट हुई ! अज्ञान रात्रि को पाकर कौन सुख पूर्वक उसे बिता पाया होगा अज्ञान रात्रि से तात्पर्य है यह जन्म जिसमें भजन न कर पाये समय यूं ही बीत जाय । हम तो सुख प्रभु सानिध्य को मानते हैं उसके लिये हम भुवनभर में डोल लिये ।
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बंद पंच संक्या जुगल, सम करि भवन मिलाइ ।
बाण पंच गुण एक करि, जगजीवन मिलि मांहि ॥२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि पांचों इन्द्रियों को मन व दृष्टि से रोककर ह्रदय रुपी भवन में रखा है, रोका है, पांचों के कामना रुपी शर एक प्रभु नाम में समाहित कर ह्रदय में रखे हैं ।
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संक्या बेदन सब करै, षट क्रम१ बारह मास२ ।
बेद सुध हरि भज तिरै, सु कहि जगजीवनदास ॥३॥
{१. षट क्रम=छह कर्म(१. अध्ययन, २. अध्यापन, ३. यजन, ४. याजन, ५. दान एवं ६.प्रतिग्रह )} (२. बारह मास=चैत्र, वैशाख आदि १२ मास)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव उद्धार के लिये नित्य अध्ययन, अध्यापन यज्ञ, करना व करवाना, दान व धर्सम्मत दान सभी करता है क्योंकि उसके मन में शंका रुपी पीड़ा है कि मेरा उद्धार होगा या नहीं । संत कहते हैं उद्धार तो स्मरण से ही होगा ।
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कहि जगजीवन एक दोइ, तीन च्यार अरु पंच ।
इन मंहि अरथ अगाध हरि, सबद सांण करि३ संच ॥४॥
(३. सांण करि=मिला कर)
संतजगजीवन जी कहते है कि पांच ज्ञान इन्द्रियों के भिन्न भाव है ऐसे ही पांच महाभूतों से इस देह के भी इसमें प्रभु स्मरण को मिला देने से उसके कितने ही अर्थ या प्रयोजन होते हैं ।
(क्रमशः)

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