शनिवार, 30 मार्च 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४०९

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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४०९)*
*राग ललित ॥२५॥**(गायन समय प्रातः ३ से ६)*
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*४०९. (गुजराती) हितोपदेश । गजताल*
*वाहला माहरा ! प्रेम भक्ति रस पीजिये,*
*रमिये रमता राम, माहरा वाहला रे ।*
*हिरदा कमल में राखिये, उत्तम एहज ठाम,*
*माहरा वाहला रे ॥टेक॥*
*वाहला माहरा ! सतगुरु शरणे अणसरे,*
*साधु समागम थाइ, माहरा वाहला रे ।*
*वाणी ब्रह्म बखानिये, आनन्द में दिन जाइ,*
*माहरा वाहला रे ॥१॥*
*वाहला माहरा ! आतम अनुभव ऊपजे,*
*ऊपजे ब्रह्म गियान, माहरा वाहला रे ।*
*सुख सागर में झूलिये, साचो येह स्नान,*
*माहरा वाहला रे ॥२॥*
*वाहला माहरा ! भव बन्धन सब छूटिये,*
*कर्म न लागे कोइ, माहरा वाहला रे ।*
*जीवन मुक्ति फल पामिये, अमर अभय पद होइ,*
*माहरा वाहला रे ॥३॥*
*वाहला माहरा ! अठ सिधि नौ निधि आँगणें,*
*परम पदारथ चार, माहरा वाहला रे ।*
*दादू जन देखे नहीं, रातो सिरजनहार,*
*माहरा वाहला रे ॥४॥*
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हे प्रिय साधक ! मैं तुम्हें हित का उपदेश करता हूँ । तूं प्रभु की प्रेमाभक्ति करके उस प्रेमरस का पान कर और अपने हृदय में राम का भजन कर । क्योंकि प्रभुध्यान के लिये यह उत्तम स्थान हैं । किन्तु सद्गुरु की कृपा और सत्संगति के बिना यह कार्य दुर्लभ हैं । अतः सत्पुरुषों का समागम कर ।
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संत सदा ब्रह्मज्ञान का उपदेश करते हैं उनकी सत्संगति से साधक आनन्दपूर्ण हो जाता हैं । बुद्धि में आत्मा का अनुभव पैदा होता हैं । जिससे ब्रहमज्ञान प्राप्त हो जाता हैं । और ज्ञान से ब्रह्मानन्दसमुद्र में डूब जाता हैं । यह ही सच्चा स्नान है । इससे जीव के सारे कर्मबन्धन कट जाते हैं ।
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कर्तृत्वभोक्तृत्व धर्म से अतीत होने के कारण सुख-दुःखरूपी कर्म फलों से साधक लिप्त नहीं होता और जीवन्मुक्त होकर अमर अभय पद को प्राप्त कर लेता हैं । उसके आगे अष्ट सिद्धियाँ और नवनिधियाँ नाचती रहती हैं ।
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धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ये चारों पदार्थ भी सुलभ हो जाते हैं, किन्तु भगवान् का भक्त निष्काम होने से उनकी तरफ दृष्टिपात भी नहीं करता । क्योंकि उसको केवल प्रभु ही प्यारे लगते हैं । अतः वह उनके प्रेम में ही अनुरक्त रहता हैं ।
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भर्तृहरि ने कहा है कि –
कहये, सत्संगति पुरुषों का क्या कार्यसिद्धि नहीं करती । यह बुद्धि की जड़ता को हर लेती हैं । वाणी में सत्य का संचार करती हैं । सन्मान बढ़ाती हैं । पाप को दूर करती हैं । चित्त को प्रसन्न करती हैं । और चारों तरफ कीर्ति को फैलाती हैं ।
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महाभारत में –
सत्पुरुषों के प्रति जो विश्वास होता हैं वैसा विश्वास अपने में भी नहीं होता । अतः प्रायः सभी लोग सत्पुरुषों के साथ प्रेम करना चाहते हैं ।
(क्रमशः)

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