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*सूरज फटिक पाषाण का, तासौं तिमिर न जाइ ।*
*साचा सूरज परगटै, दादू तिमिर नशाइ ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)डाक्टर तथा मास्टर*
दिन के साढ़े दस बजे का समय है । मास्टर डाक्टर सरकार के घर आये हुए हैं । रास्ते पर दुमँजले के बैठकखाने का बरामदा है, वहीं वे डाक्टर के साथ बेंच पर बैठे हुए बातचीत कर रहे हैं । डाक्टर के सामने ग्लास-केस में पानी है और उसमें लाल मछलियाँ क्रीड़ा कर रही हैं । डाक्टर रह-रहकर इलायची का छिलका पानी में डाल रहे हैं और मैदे की गोलियाँ बनाकर छत पर फेंक रहे हैं, गौरैयों को चुगाने के लिए । मास्टर बैठे हुए देख रहे हैं ।
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डाक्टर - (मास्टर से, सहास्य) - यह देखो, ये (लाल मछलियाँ) मेरी ओर देख रही हैं, जैसे भक्त भगवान की ओर देख रहे हों; परन्तु इन्होंने यह नहीं देखा कि मैंने इधर इलायची का छिलका फेंका है । इसीलिए कहता हूँ; केवल भक्ति से क्या होगा ? ज्ञान चाहिए । (मास्टर हँस रहे हैं) और वह देखो, गौरैये उड़ गये; उधर मैंने मैदे की गोली फेंकी तो उन्हें इससे भय हो गया । उनमें भक्ति नहीं है, क्योंकि उनमें ज्ञान नहीं । वे जानती नहीं कि यह उनके खाने की चीज है ।
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डाक्टर बैठकखाने में आकर बैठे । चारों ओर आलमारी में ढेरों पुस्तकें रखी हैं । डाक्टर जरा विश्राम कर रहे हैं । मास्टर पुस्तक देख रहे हैं और एक एक पुस्तक लेकर पढ़ रहे हैं । अन्त में कैनन-फैरर की लिखी ईशु की जीवनी थोड़ी देर पढ़ते रहे ।
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डाक्टर बीच-बीच में गप्पें भी लड़ा रहे हैं । कितने कष्ट से होमियोपैथिक अस्पताल बना था, इस सम्बन्ध की चिट्ठियाँ और दूसरे दूसरे कागजात मास्टर से पढ़ने के लिए कहा । और कहा, "ये सब चिट्ठियाँ १८७६ के ‘कलकत्ता जनरल ऑफ मेडीसीन्’ में मिलेंगी ।" होमियोपैथी पर डाक्टर का बड़ा विश्वास है ।
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मास्टर ने एक और पुस्तक उठायी, मुँगर कृत 'नया धर्म' (Munger's New Theology) । डाक्टर ने उसे देखा ।
डाक्टर – मुँगर के सिद्धान्त युक्तियों और तार्किक विचारों पर अवलम्बित हैं । इसमें ऐसा नहीं लिखा है कि चैतन्य, बुद्ध या ईशु ने अमुक बात कही है, अतएव इसे मानना चाहिए ।
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मास्टर - (हँसकर) - चैतन्य और बुद्ध की बातें नहीं, परन्तु मुँगर ने कही, इसलिए बात माननीय है !
डाक्टर - तुम्हारी इच्छा, चाहे जो कहो ।
मास्टर - हाँ, किसी न किसी का नाम प्रमाण के लिए लेना ही पड़ता है, इसलिए मुँगर का ही नाम सही ! (डाक्टर जोर से हँसते हैं)
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डाक्टर गाड़ी पर बैठे, साथ साथ मास्टर भी । गाड़ी श्यामपुकुर की ओर जा रही है । दोपहर का समय है । दोनों बातचीत करते हुए जा रहे हैं । डाक्टर भादुड़ी की चर्चा भी बीच-बीच में आती है, क्योंकि ये श्रीरामकृष्ण के पास कभी-कभी आते हैं ।
मास्टर - (सहास्य) - आपके लिए भादुड़ी ने कहा है कि ईंट और पत्थर से जन्म फिर शुरू करना होगा ।
डाक्टर - वह कैसा ?
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मास्टर - आप महात्मा, सूक्ष्म शरीर आदि बातें तो मानते नहीं । भादुड़ी महाशय, जान पड़ता है, थियोसफिस्ट हैं; इसके अतिरिक्त आप अवतार-लीला भी नहीं मानते । इसीलिए उन्होंने शायद हँसी में कहा था कि अब की बार मरने पर आपका मनुष्य के घर जन्म तो होगा ही नहीं, कोई जीव-जन्तु, पेड़-पौधा भी आप न होंगे । आपको कंकड़-पत्थर से ही श्रीगणेश करना होगा ! फिर बहुत से जन्मों के बाद आदमी हों तो हो ।
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डाक्टर - अरे बाप रे !
मास्टर - और यह भी कहा है कि साइन्स के सहारे आपका जो ज्ञान है, वह मिथ्या है; क्योंकि वह अभी अभी है और अभी अभी नहीं । उन्होंने उपमा भी दी है । जैसे दो कुएँ हैं । एक में नीचे स्त्रोत है, उसी से पानी आता है । दूसरे में स्रोत नहीं है, वह बरसात के पानी से भर गया है । वह पानी अधिक दिन रुक नहीं सकता । आपका साइन्स का ज्ञान भी बरसात के पानी की तरह है, वह सूख जायेगा ।
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डाक्टर - (जरा हँसकर) - अच्छा, यह बात ! –
गाड़ी कार्नवालिस स्ट्रीट पर आयी । डाक्टर सरकारने डाक्टर प्रताप मुजुमदार को गाड़ी में बिठा लिया । डा. प्रताप कल श्रीरामकृष्ण को देखने गये थे । वे सब श्यामपुकुर आ पहुँचे ।
(क्रमशः)

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