बुधवार, 27 मार्च 2024

*श्री रज्जबवाणी सवैया ~ १७*

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*अजर जरंता, अमी झरंता,*
*तार अनंता बहु गुणवंता ॥*
*झिलमिल सांई, ज्योति गुसांई,*
*दादू मांही नूर रहांई ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. १०८)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
चौतीसा -
दादुर पिक मोर सीप इन्द्र आशा सकल द्वीप,
चाहै सब सुख समीप जीवन जग भावै ।
तृण तरू बेल्यों विलास१ किरण कुसुम२ कुष्ट नाश,
चाहे जु चकोर दास कब मयंक३ आवै ॥
चकवा चकती सुमित्त दृष्टि इष्ट४ कमलकंत५,
रवि प्रकाश रैन अंत जगत को जगावै ।
तैसे दादू दयाल कीजो सबकी सँभाल,
दर्श परस६ ह्वै निहाल७ रज्जब सुख पावै ॥१७॥
मेंढक, कोयल, मोर, सीप और सभी द्वीप वर्षा के लिये इन्द्र की आशा करते हैं, सभी सुख१ की समीपता चाहते हैं, जगत् के प्राणियों को जीवन ही प्रिय लगता है ।
चन्द्रमा से तृण, वृक्ष, बेलियों को सुख मिलता है, चन्द्र किरण से पुष्पों२ का कुष्ट नाश होता है । चकोर रूप दास भी चाहता है कि कब चन्द्रमा३ आवे ।
सूर्य प्रकाश से चकवा चकवी सम्यक् मित्र बने रहते हैं, दृष्टि को रवि प्रकाश अनुकूल४ है । कमल को स्वामी५वत प्रिय है, सूर्य प्रकाश रात्रि का अंत करके जगत् को जगाता है ।
वैसे ही हे दादू दयालो ! आप भी सबकी संभाल करें । दर्शन और चरण स्पर्श से हम कृतार्थ होकर सुख पावें ऐसी कृपा करें ।
(क्रमशः)

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