शुक्रवार, 8 मार्च 2024

*४१. साच्छीभूत कौ अंग २१/२४*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*४१. साच्छीभूत कौ अंग २१/२४*
.
ऊपर थैं बरकत८ रहै, मांही राजस९ रोग ।
कहि जगजीवन हरि भगत, तिन कै हरष न सोग ॥२१॥
(८. बरकत=धर्मवृद्धि, धर्मलाभ) (९. राजस रोग=सांसारिक भोग विलास)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हमारे मन में उपरी दिखावा तो धर्म का होता है व अन्तर में संसारिक भोग विषय रहते हैं । और जो सच्चे हरि भक्त हैं वे न तो दुखी होते हैं न ही खुश रहते हैं समभाव रहते हैं ।
.
जहां हरि तरवर रांमजी, तहां जन पंषि अनंत ।
कहि जगजीवन सुफल फल, सरस चखावै कंत ॥२२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जहाँ प्रभु नामक वृक्ष है वहां अनंत भक्त रुपी पक्षी आते हैं । उन्हें परमात्मा आप अच्छे फल का आस्वादन कराते हैं ।
.
तिमिर हरण१० त्रिभुवन धंणी११, सतगुरु साच्छी भूत ।
कहि जगजीवन सकल हरि, अगम रांम अवधूत१२ ॥२३॥
(१०. तिमिरहरण=अज्ञान के नाशक) (११. त्रिभुवनधणीं=जगत के स्वामी)
(१२. अवधूत=उच्च भूमि का सन्त)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि परमात्मा सब अज्ञान रुपी अंधकार को दूर करते हैं । और गुरु महाराज इसके साक्षी हैं । संत कहते हैं कि सर्वत्र परमात्मा हैं जिन्हें अगम होते हुये भी संत पाते हैं ।
.
वह पंणि देखिय हम पंणि देखी, और दिखावै रांम ।
कहि जगजीवन देखी सुणीं, रसना हरि हरि नांम ॥२४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो प्रभु हमें दिखाते हैं वह ही हम देखते हैं । और प्रभु ही सब दिखाते हैं । संत कहते कुछ भी देखना सुनना अलग है जीव हर समय राम राम हरि नाम रटता रहे ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें