🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*देह रहै संसार में, जीव राम के पास ।*
*दादू कुछ व्यापै नहीं, काल झाल दुख त्रास ॥*
.
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
==============
श्रीरामकृष्ण - यदु मल्लिक भी इसी तरह दूसरे ख्याल में पड़ा रहता है । जब भोजन करने बैठता है, उस समय भी इतना अन्यमनस्क रहता है कि भला-बुरा जो कुछ सामने आया वही खा लेता है ।
.
किसी ने अगर कहा, ‘इसे मत खाना, यह अच्छी नहीं लगती’, तब कहता है, 'क्या ? यह तरकारी अच्छी नहीं ? हाँ, सच ही तो है ।'
क्या श्रीरामकृष्ण यह सूचित कर रहे हैं कि ईश्वर-चिन्तन से होनेवाली अन्यमनस्कता तथा विषय- चिन्तन से होनेवाली अन्यमनस्कता में बहुत अन्तर है ?
.
फिर भक्तों की ओर देख श्रीरामकृष्ण डाक्टर की ओर इशारा करके कह रहे हैं - "देखो, सिद्ध होने पर चीज नरम हो जाती है । पहले ये बड़े कड़े थे, अभी भीतर से नरम हो रहे हैं ।"
डाक्टर - सिद्ध होने पर चीज ऊपर से ही नरम होती है, परन्तु इस जीवन में मेरे लिए यह बात नहीं होने की ! (सब हँसते हैं)
.
डाक्टर बिदा होनेवाले हैं । श्रीरामकृष्ण से कह रहे हैं –
“पैरों की धूल लोग लेते हैं, उन्हें क्या तुम मना नहीं कर सकते ?”
श्रीरामकृष्ण - क्या सब लोग अखण्ड सच्चिदानन्द को पकड़ सकते हैं ?
डाक्टर - इसलिए क्या जो मत ठीक है वह आप लोगों को नहीं बतलायेंगे ?
श्रीरामकृष्ण - लोगों की अलग अलग रुचि होती है । और फिर आध्यात्मिक जीवन के लिए सब लोग एक समान अधिकारी नहीं होते ।
.
डाक्टर - वह किस प्रकार ?
श्रीरामकृष्ण - रुचि भेद किस तरह का है, जानते हो ? जिसे जो भोजन रुचता है तथा सह्य है, उसी प्रकार का भोजन वह करता है । कोई मछली का शोरवा पसन्द करता है, तो किसी को तली हुई मछलियाँ अच्छी लगती है, कोई उनकी तरकारी बनाकर खाता है, तो कोई पुलावा बनाकर । उसी तरह अधिकारी-भेद भी है । मैं कहता हूँ, पहले केले के पेड़ में निशाना साधो, फिर दीपक की लौ पर, बाद में उड़ती हुई चिड़िया पर ।
.
शाम हो गयी । श्रीरामकृष्ण ईश्वर-चिन्तन में मग्न हुए । इतनी पीड़ा है, परन्तु वह मानो एक ओर पड़ी रही । दो-चार अन्तरंग भक्त पास बैठे हुए सब देख रहे हैं श्रीरामकृष्ण बड़ी देर तक इसी अवस्था में रहे । श्रीरामकृष्ण प्राकृत अवस्था में आये ।
.
मणि पास बैठे हुए हैं । उनसे एकान्त में कह रहे हैं - "देखो, अखण्ड में मन लीन हो गया था । इसके बाद जो कुछ देखा, उसके सम्बन्ध में बहुतसी बातें हैं । डाक्टर को देखा, उसकी बन जायगी - कुछ दिन बाद । अब अधिक कुछ उससे कहने की आवश्यकता नहीं । एक आदमी को और देखा । मन में यह उठा कि उसे भी ले लूँ । उसकी बात तुम्हें बाद में बताऊँगा ।"
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें