शनिवार, 30 मार्च 2024

*श्री रज्जबवाणी सवैया ~ १८*

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*सांई दीया दत घणाँ, तिसका वार न पार ।*
*दादू पाया राम धन, भाव भक्ति दीदार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
सेवक संतोष काज१ परम पुरुष आये आज२,
पूरे समस्त काज पावन मन कीन्हें ।
जिन को जनों की लाज सो पधारे शीश ताज,
उपजे आनन्द राज पाप पुंज३ छीने ॥
बैठाये नाम जहाज दिये हैं सकल साज४,
पूरों की पूरी निवाज राम नाम दीन्हें ।
दीसे दीरघ साज६ दादू गुरु गृह विराज७,
संकट दुख सकल भाज अपने करि लीन्हें ॥१८॥
हम सेवकों के संतोष के लिये१ ही इस समय२ परम पुरुष दादूजी महाराज पधारे हैं और संपूर्ण कार्य पूर्ण करके हमारे मनों को पवित्र किया है ।
जो भक्तों की लाज रखते हैं, वे ही हमारे शिरमौर दादूजी पधारे हैं, उनके राज्य में सब प्रकार सबको आनन्द ही हुये हैं और पाप राशि३ क्षीण हो गई है ।
शराणागतों को नामरूप जहाज में बैठाया है और मुक्ति के सब साधन४ दिये हैं, पूरों की कृपा५ भी पूरी ही होती है, इसलिये सबको राम के नाम ही प्रदान किये हैं ।
दादूजी के पास मुक्ति की महान् साधन६ सामग्री है, अत: गुरुदेव दादूजी के आश्रम पर रहने७ से शरीर के संकट और मन के दु:ख सभी भाग जाते हैं और वे गुरुदेव वहाँ रहने वालों को अपने ही बना लेते हैं अंतराय कुछ भी नहीं रखते ।
(क्रमशः)

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