🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*समाचार सत पीव का, कोइ साधु कहेगा आइ ।*
*दादू शीतल आत्मा, सुख में रहे समाइ ॥*
.
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
=========
*वृन्दावन में बस कर मन को वश में करने वाले भक्त*
*छप्पय-*
*वृन्दावन बस वश कियो, जिन जिन जन मन आपणौं ॥*
*सो सब संत बखावणि, आँणि अंतरगत मन को ।*
*शम दम शोध शरीर, गिरा पूछ हु गुरु जन को ॥*
*आचारज मुनि मिश्र, भटहु हरिवंश व्यास भण ।*
*गंगल गदाधर चतुरभुज, और संतन सर्व सु गिण ॥*
*राघव रट विरक्त रु गृही, उर हरि भक्ति उद्यापणाँ ।*
*वृन्दावन बस वश कियो, जिन जिन जन मन आपणौं ॥२८६॥*
.
वृन्दावन में निवास करके जिन जिन भक्तों ने अपना मन वश किया है, उन सब संतों का यश अपना मत भीतर रखकर अर्थात् स्थिर करके कथन करना चाहिये । शम अर्थात् मन को निग्रह करके, दम अर्थात् इन्द्रियों को निग्रह करके जिनने शरीर का शोधन किया है, ऐसे संतों के विषय में गुरुजनों से वाणी द्वारा पूछना चाहिए ।
.
वे बतायेंगे कि अमुक आचार्य, मुनि, मिश्र और भट्टों ने वृन्दावन में निवास किया है । तथा जो वृन्दावन निवासी प्रकट रूप में माने जाते हैं जैसे- हरिवंशजी, व्यासजी, गंगल भट्टजी, गदाधर भट्टजी, चतुरभुजजी आदि और भी सभी श्रेष्ठ संतों को जिनने वृन्दावन में निवास करके अपना मन वश में किया है उनको भी गिन लेना चाहिए । चाहे वे विरक्त हों वा गृहस्थ ही हों ।
.
भगवान् का नाम रटकर अपने हृदय में हरि भक्ति का उद्यापन किया है अर्थात् भगवान् का नाम रटकर अपने हृदय में हरि भक्ति का उद्यापन किया है अर्थात् भगवान् को प्राप्त करके भक्ति का कार्य समाप्त किया है और वृन्दावन में ही देह त्याग किया है, उन सब का यश कथन करना ही चाहिये । (गंगल भट्ट की कथा मूल छप्पय २६० में और गदाधर भट्ट की कथा मूल छप्पय २६१ में पहले आ गयी है । हरिवंशजी, व्यासजी और चतुर्भुज जी की कथाएं क्रम से आगे आरही हैं ।)
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें