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*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग ५/८*
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तुंगी४ अरिसुत तास रिपु, ता बंधू पित राखि ।
जगजीवन हरि पाइये, साध कहै गुर साखि ॥५॥
(४. तुंगी=रात्रि)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि अज्ञान रुपी इस जीवन रात्रि में जितने भी भटकाने वाले कारक हैं उन्हें बंधु व पितृतुल्य जानो जिससे वे कृपालु रहें । संत व गुरु महाराज कहते हैं कि तब ही प्रभु को पा सकोगे अन्यथा ये भटकाते रहेंगे ।
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तुंगी मंडण तस५ पिता, तास सुता संग त्यागि ।
जगजीवन बैराग ए, रांम रांम जपि जागि ॥६॥
(५. तस=उस का)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि अज्ञान रुपी रात्रि के जनक अज्ञान व उसकी तनया निद्रा का संग त्यागो व वैराग्य धारण कर राम स्मरण कर ज्ञान जागृति में आओ ।
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सारंग को अरि तास रिपु, ता कौं वैरी राख ।
जगजीवन तिहुं लोक मैं, जहां जाइ तहां साख ॥७॥
संत जगजीवन जी कहते हैं कि जैसे दीपक के आते ही अंधकार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है व ज्ञान के आते ही अज्ञान मिट जाता है । अतः अंधकार को, मिटाने के लिये दीपक व अज्ञान को मिटाने के लिये ज्ञान को धारण कर लेंगे तो अंधकार, जो कि तामस प्रवृति का परिचायक है, से मुक्ति मिलेगी । व ज्ञान मिलने से अज्ञान रुपी शत्रु पर विजय प्राप्त कर परमात्मा को देखने की दिव्य दृष्टि मिलेगी उनकी कृपा प्रसाद सानिध्य की अनुभूति होगी, जहाँ भी हमारी उप स्थिति होगी वह गरिमामय होगी ।
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एकै पंथी एक दिन, उभै दिसा का कांम ।
जगजीवन साधै जुगल, ते क्यूं पावै रांम ॥८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं एक जीव पथिक है वह प्रभु व संसार, दो दिशाओं में बंटकर कैसे प्रभु को पा सकते हैं ।
(क्रमशः)

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