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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४१०)*
*राग ललित ॥२५॥**(गायन समय प्रातः ३ से ६)*
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*४१०. प्रीति अखंड । गजताल*
*हमारो मन माई ! राम नाम रंग रातो ।*
*पिव पिव करै पीव को जानै, मगन रहै रस मातो ॥टेक॥*
*सदा सील संतोष सुहावत, चरण कँवल मन बाँधो ।*
*हिरदा माँही जतन कर राखूँ, मानों रंक धन लाधो ॥१॥*
*प्रेम भक्ति प्रीति हरि जानूं, हरि सेवा सुखदाई ।*
*ज्ञान ध्यान मोहन को मेरे, कंप न लागे काई ॥२॥*
*संगि सदा हेत हरि लागो, अंगि और नहिं आवे ।*
*दादू दीन दयाल दमोदर, सार सुधा रस भावे ॥३॥*
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हे भाई ! मेरा मन राम नाम में ही अनुरक्त हो रहा हैं । हे प्यारे ! हे प्यारे ! ऐसा कहते हुए मैं अपने प्यारे राम को ही जानता हूँ और उसी मेरे प्यारे राम का नाम चिन्तन करते हुए उसी के प्रेम में डूबा हुआ प्रेमरस के पान में मस्त हो रहा हूँ ।
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जैसे गरीब को धन मिल जाय तो वह उसको सदा सुरक्षित रखता हैं वैसे ही मैं भी रामनाम धन को सुरक्षित रखता हूँ । अर्थात् कभी नहीं भूलता हूँ । मैं तो लौकिक प्रेम और नवधा भक्ति केवल हरि स्मरण को ही जानता हूँ । क्योंकि हरि सेवा ही सब सुखों को देने वाली हैं ।
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मेरे हृदय में उसी विशव को मोहित करने वाले मोहन भगवान् का ज्ञान ध्यान बना रहता हैं । उसके ध्यान से मन मल विक्षेपादि दोषों से रहित हो जाता हैं । और वह हरि ही मेरा सदा संगी हैं । इसलिये मुझे बड़ा ही प्यारा लगता हैं । मेरे प्रेमम का दूसरा कोई पात्र हैं ही नहीं किन्तु दीनों पर दया करने वाले दामोदर भगवान् ही मुझे अमृत के तुल्य प्रिय हैं ।
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दामोदराष्टक में लिखा है कि –हे दामोदर ! जिस प्रकार से आपने अपने दामोदर रूप से ऊंखल से बन्धे हुए ही कुबेर के यमज पुत्रों का वृक्ष योनि से उद्धार किया और साथ ही साथ उन्हें अपना भक्त भी बना लिया उसी प्रकार मुझे भी प्रेमभक्ति प्रदान करो । मेरा मोक्ष के प्रति तनिक भी आग्रह नहीं है ।
(क्रमशः)
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