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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*दादू गुप्त गुण परगट करै, परगट गुप्त समाइ ।*
*पलक मांहि भानै घड़ै, ताकी लखी न जाइ ॥*
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*संसै प्रश्न कौ अंग ॥*
काजी पंडित बूझिया, किनें जाब न दीया ।
बषनां बरिया कौण थी, जब यहु सब कुछ किया ॥१॥
बषनांजी जहांगीर के प्रश्न को अपनी भाषा में कहते हैं, काजी-पंडित सभी से प्रश्न किया गया कि वह समय कौन सा था, जब परमात्मा ने यह सारा संसार निर्मित किया था । काजी अथवा पंडित किसी ने भी इस प्रश्न का संतोषप्रद उत्तर नहीं दिया ॥१॥
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*निज निहचै उत्तर कौ अंग ॥*
जिहिं बरियाँ यहु सब हुवा, सो हम किया बिचार ।
बषनां बरिया खुसी की, करता सिरजनहार ॥२॥
जिस समय इस समस्त सृष्टि का निर्माण हुआ, उस पर हमने गंभीरता से विचार किया और निश्चय कीया कि सृष्टिकर्त्ता सृजनहार ने जिस समय इस सृष्टि की रचना की वह समय अत्यन्त आनंद-खुशी का था ॥२॥
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*अविगत लीला गर्व गंजन कौ अंग ॥*
बषनां गति अवगत्ति की, क्यूँ ही लषी न जाइ ।
चंदा चंदौ केथ हौ, जब चंदि गह्यौ थौ राहि ॥३॥
बषनांजी कहते हैं, अविगत परमात्मा की गति = कार्य प्रणाली = लीला को किसी भी प्रकार नहीं जाना जा सकता । उस समय चंद्रमा का चंद्रत्व कहाँ था जब उसको राहु ने ग्रस लिया था । कहने का आशय यह है कि अविगत परमात्मा किस समय क्या खेल कर बैठता है, कोई नहीं जानता ।
वह पलक में राजा को रंक तथा रंक को राजा बना देता है । मन के प्रतीक चंद्रमा को एक क्षण में राहु ने निगल लिया । चंद्रमा उसका क्या कर सका । वेदांतसूत्र में इसीलिये कहा है “लोकवत्तु लीला कैवल्यम्” (ब्रह्मसूत्र) यह संसार बाजीगर की बाजी के समान परमात्मा की लीला मात्र है ॥३॥
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बषनां गति अविगत्ति की, क्यूँ ही जाइ न चीन्हीं ।
थावरि थावर कौंण था, जिहि छाती पागौ दीन्हीं ॥४॥
बषनांजी कहते हैं, उस अविगत परमात्मा की गति = लीला को किसी प्रकार भी जानना शक्य नहीं है क्योंकि उस शनि का शनित्व उस समय कहाँ चला गया था जब उसकी छाती पर खाट का पाया रखकर रावण सोया था ।
शनि इतना प्रबल और क्रूर है कि जन्मते ही इसकी दृष्टि जैसे ही पिता सूर्य पर पड़ी, सूर्य भी जलने लगे थे । गणेश का शिर शनि की दृष्टि से ही धड़ से अलग हुआ था । किन्तु उस अविगत की लीला विचित्र है कि ऐसे क्रूर ग्रह को भी रावण के यहाँ बंदी होकर रहना पड़ा ॥४॥
इति सम्रथाई कौ अंग संपूर्ण ॥अंग ९५॥साषी १७०॥
(क्रमशः)

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