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*तुम बिन धणी न धोरी जीव का, यों ही आवै जाइ ।*
*जे तूँ साँई सत्य है, तो बेगा प्रकटहु आइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ बिनती का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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दीन दयालु दियो दुख दीनन,
दादू सी दौलत हाथ सौं लीन्ही ।
रोष अतीतन सौं जु कियो हरि,
रोजी जु रंकन की जग छीनी ॥
गरीब निवाज गरीब हते सब,
संतन शूल्य जु अति गति दीन्ही ।
हो रज्जब रोय कहै यहु काह जु,
त्राहि त्राहि कहा यहु कीन्ही ॥२१॥
दादूजी जैसी संपति हमारे साथ से लेकर दीन दयालु प्रभु ने हम दीनों को दुख दिया है ।
हरि ने अतीतों पर कोप ही किया है । जो हम जैसे रंको की दादूजी रूपी रोजी को जगत से छीन लिया है ।
गरीब निवाज कहलाकर भी सब गरीबों को मारा है और संतों को तो अति महान दु:ख ही दिया है ।
हे सज्जनों ! मैं रोकर कहता हूं यह क्या हुआ ? हे प्रभो ! आप हमारी रक्षा करो, रक्षा करो आपने यह क्या किया है ?
### इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित श्री स्वामी दादूजी के भेंट के सवैये समाप्त ###
(क्रमशः)

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