🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*जहाँ राम तहँ मैं नहीं, मैं तहँ नाहीं राम ।*
*दादू महल बारीक है, द्वै को नाहीं ठाम ॥*
.
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
==============
भक्तगण चुप हैं । एकाएक श्रीरामकृष्ण भावावेश में डाक्टर सरकार से कह रहे हैं –
“महीन्द्रबाबू, तुम क्या रुपया-रुपया कर रहे हो ! - बीबी बीबी ! - मान-मान ! ये सब इस समय छोड़कर एकचित्त हो ईश्वर में मन लगाओ और ईश्वर के आनन्द का उपभोग करो !”
डाक्टर सरकार चुप हैं । सब लोग चुप हैं ।
.
श्रीरामकृष्ण - न्यांगटा ज्ञानी के ध्यान की बात कहता था । पानी ही पानी है, अध: ऊर्ध्व उसी से पूर्ण है । जीव मानो मीन है, उस पानी में आनन्द से तैर रहा है । यथार्थ ध्यान होने पर इसे प्रत्यक्ष रूप से देख सकोगे ।
.
"अनन्त समुद्र है, पानी का कहीं अन्त नहीं । उसके भीतर मानो एक घट है । उसके बाहर भी पानी है और भीतर भी । ज्ञानी देखता है, भीतर और बाहर वे ही परमात्मा हैं । तो फिर वह घट क्या वस्तु है ? घट के रहने के कारण पानी के दो भाग जान पड़ते हैं । अन्दर और बाहर का बोध हो रहा है । 'मैं' - रूपी घट के रहते ऐसा ही बोध होता है । वह 'मैं' अगर मिट जाय, तो फिर जो कुछ है, वही रहेगा; मुख से वह कहा नहीं जा सकता ।
.
"ज्ञानी का ध्यान और किस तरह का है, जानते हो ? अनन्त आकाश है, उसमें आनन्द से पंख फैलाये हुए पक्षी उड़ रहा है । चिदाकाश में आत्मा-पक्षी इसी तरह विहार कर रहा है । वह पिंजड़े में नहीं है, चिदाकाश में उड़ रहा है । आनन्द इतना है कि समाता ही नहीं ।"
.
भक्तगण निर्वाक् होकर ध्यान-योग की बातें सुन रहे हैं । कुछ देर बाद प्रताप ने फिर बातचीत शुरू की ।
प्रताप - (सरकार से) - सोचा जाय तो सब छाया ही छाया जान पड़ती है ।
डाक्टर - छाया अगर कहते हो तो तीन चीजों की आवश्यकता है । सूर्य, वस्तु और छाया । बिना वस्तु के क्या छाया होती है ? इधर कह रहे हो, ईश्वर सत्य है, फिर सृष्टि को असत्य बतलाते हो ! नहीं, सृष्टि भी सत्य है ।
.
प्रताप - आईने में जैसे तुम प्रतिबिम्ब देखते हो उसी तरह मनरूपी आईने में यह संसार भासित हो रहा है ।
डाक्टर - एक वस्तु के अस्तित्व के बिना क्या कोई प्रतिबिम्ब हो सकता है ?
नरेन्द्र - क्यों, ईश्वर तो वस्तु हैं ।
डाक्टर चुप हो रहे ।
.
श्रीरामकृष्ण - (डाक्टर से) - एक बात तुमने बहुत अच्छी कही । भावावस्था ईश्वर के साथ मन के संयोग से होती है, यह बात केवल तुमने ही कही और किसी ने नहीं कही ।
“शिवनाव ने कहा था, ‘अधिक ईश्वर-चिन्तन करने पर मनुष्य का मस्तिष्क बिगड़ जाता है ।' कहता है, संसार में जो चेतनस्वरूप हैं, उनके चिन्तन से अचेतन हो जाता है ! जो बोधस्वरूप है, जिनके बोध से संसार को बोध हो रहा है, उनकी चिन्ता करके अबोध हो जाना !!
.
"और तुम्हारी साइन्स क्या कहती है ? बस यही न कि इससे यह मिल जाय या उससे वह मिल जाय तो अमुक तैयार हो जाता है, आदि आदि । इन सब बातों की चिन्ता करके - जड़ वस्तुओं में पड़कर तो मनुष्य के और भी बोधहीन हो जाने की सम्भावना रहती है ।"
.
डाक्टर - उन जड़ वस्तुओं में मनुष्य ईश्वर का दर्शन कर सकता है ।
मणि - परन्तु मनुष्य में यह दर्शन और भी स्पष्ट हो सकता है, और महापुरुषों में और भी अधिक स्पष्ट । महापुरुषों में उनका प्रकाश अधिक है ।
डाक्टर – हाँ, मनुष्य में दर्शन अवश्य हो सकता है ।
.
श्रीरामकृष्ण - जिनके चैतन्य से जड़ भी चेतन हो रहे हैं, - हाथ, पैर और शरीर हिल रहे हैं, उनके चिन्तन से क्या कोई कभी अचेतन हो सकता है ? लोग कहते हैं, 'शरीर हिल रहा है', परन्तु वे हिला रहे हैं, यह ज्ञान नहीं है । लोग कहते हैं, ‘पानी से हाथ जल गया’, पर पानी से कभी कुछ नहीं जलता । पानी के भीतर जो ताप है, जो अग्नि है, उसी से हाथ जल गया ।
.
"हण्डी में चावल उबल रहे हैं । आलू और भटे उछल रहे हैं । छोटे लड़के कहते हैं, 'आलू और भटे अपने आप उछल रहे हैं ।' वे यह नहीं जानते कि नीचे आग है । मनुष्य कहते हैं, 'इन्द्रियाँ आप ही आप काम कर रही हैं'; भीतर जो चैतन्यस्वरूप हैं, उनकी बात नहीं सोचते ।"
'डाक्टर सरकार उठे । अब बिदा होंगे । श्रीरामकृष्ण उठकर खड़े हो गये ।
.
डाक्टर - लोगों पर जब कष्ट पड़ता है तब वे ईश्वर का स्मरण करते हैं । और नहीं तो क्या लोग केवल साध ही साध में 'हे ईश्वर, तू ही, तू ही' करते रहते हैं ? गले में वह (घाव) हुआ है, इसलिए आप ईश्वर की चर्चा करते हैं । अब आप खुद धुनिये के हाथ में पड़ गये हैं, अब उसी से कहिये । यह मैं आप ही की कही हुई बात कह रहा हूँ ।
.
श्रीरामकृष्ण - और क्या कहूँगा !
डाक्टर - क्यों, कहेंगे क्यों नहीं ? हम उनकी गोद में हैं, उनकी गोद में खाते-पीते हैं, बीमारी होने पर उनसे नहीं कहेंगे तो किससे कहेंगे ?
श्रीरामकृष्ण - ठीक है, कभी कभी कहता हूँ । परन्तु कहीं कुछ होता नहीं ।
डाक्टर - और कहना भी क्यों, क्या वे जानते नहीं ?
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें