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*दादू समर्थ सब विधि सांइयाँ, ताकी मैं बलि जाऊँ ।*
*अंतर एक जु सो बसै, औरां चित्त न लाऊँ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थ का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
दादू दयाल के संग सदा दल१,
राम रंगीले२ दशों दिशि ठाढे३ ।
जिनके सु प्रताप प्रपंच गये भजि,
भेष भरम्म से मांड४ सौ काढे ॥
महा प्रचण्ड८ निश्शंक निरंकुश,
सहगुण५ रूप सु शीश न चाढे ।
रहत्ति६ कहत्ति७ सबै विधि समरथ,
रज्जब राम भजन्न९ सौ गाढे१० ॥१९॥
दादू दयालु जी के संग सदा समूह१ रहता है, राम के प्रेमी२ दशों दिशाओं में खड़े३ रहते हैं ।
जिनके सु प्रताप से प्रपंच भाग गये हैं और जिनने भेषादि भ्रम को ब्रह्माण्ड४ की श्रेष्ठता से निकाल दिया है अर्थात तुच्छ समझ लिया है ।
जिनका ज्ञान तेज महान प्रबल८ है, जो निश्शंक और निरंकुश हैं, सगुण५ रूप से शिर पर नहीं चढाते अर्थात इष्ट देव नहीं मानते ।
रहनी६ कहनी७ में सब प्रकार समर्थ हैं अपने व्यवहार और कथन में त्रुटि नहीं आने देते और राम भजन९ में दृढ१० रहते हैं ।
(क्रमशः)

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