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*दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ ।*
*सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारैं हत्थ ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*हितहरिवंशजी की पद्य टीका*
*इन्दव-*
*आत भये तज धाम भजे युग,*
*विप्र भलै हरि आयसु दीनी ।*
*तेरि सुता युग दे हरिवंश हि,*
*नाम कहो मम वंश ब्रधीनो ॥*
*संतन सेव बनै इनके घर,*
*दुष्टन है गति यूं सुन लींनी ।*
*मान गह्यो गृह आप लह्यो सुख,*
*जाय कही किमि सो रस भींनी ॥३९०॥*
हितहरिवंशजी सहारनपुर के निवासी व्यासजी मिश्र और तारा देवी के पुत्र थे । आपका जन्म वि० सं० १५५९ वैशाख शुक्ला एकादशी को मथुरा के निकटबाद ग्राम में हुआ था । रुक्मिणी नामक धर्मपत्नी से आपके दो पुत्र और एक कन्या हुई थी । कन्या का विवाह करने के पश्चात् आप घर छोड़कर वृन्दावन आये और युगल सरकार के भजन में अत्यधिक प्रेम बढ़ाया ।
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एक बड़भागी श्रेष्ठ ब्राह्मण को हरि ने स्वप्न में आज्ञा दी कि "तुम हितहरिवंशजी को मेरा नाम कहकर तथा मेरी आज्ञा सुनकर अपनी दोनों लड़कियाँ ब्याह दो । ये प्रशंसनीय वंश को बढ़ाने वाली हैं ।
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इनके घर में संतों की सेवा होगी और इनके संग से दुष्टों की भी सुगति होगी ।" इस प्रकार भगवान् को प्रिय वाणी सुनकर ब्राह्मण अति प्रसन्न हुआ और वैसा ही किया ।
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आपने भी भगवत् आज्ञा मानकर उनको गृह में ग्रहण करके सुख प्राप्त किया । आपकी कथा कैसे कही जाय, वह तो अद्भुत भक्ति रस से भीगी हुई और अति महान है ।
(क्रमशः)

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