मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

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*निश्‍चल करतां जुग गये, चंचल तब ही होहि ।*
*दादू पसरै पलक में, यहु मन मारै मोहि ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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मुल्ला नसरुद्दीन पत्नी की तलाश में था। चाहता था, बहुत सुंदर स्त्री मिल जाए। लेकिन जब शादी कर के लौटा तो एक बहुत कुरूप स्त्री ले आया। तो मित्रों ने उससे पूछा कि यह तुमने क्या किया ? उसने कहा, बड़ी मुसीबत हो गयी। जिस आदमी के घर में लड़की को देखने गया था, उस आदमी ने मुझसे कहा कि मेरी चार लड़कियां हैं।
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पहली लड़की की उम्र पच्चीस साल है। और उसके लिए मैंने पच्चीस हजार रुपए की दहेज की व्यवस्था कर रखी है। वह लड़की बड़ी सुंदर थी। लेकिन मैंने उस आदमी से पूछा कि तुम्हारी और लड़कियों के संबंध में क्या खबर है ? तो कहा, दूसरी लड़की की उम्र तीस साल है। उसके लिए मैंने तीस हजार की व्यवस्था कर रखी है। तीसरी की उम्र पैंतीस साल है, उसके लिए मैंने पैंतीस की व्यवस्था कर रखी है।
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और वह आदमी डरा चौथी की उम्र बताने में। लेकिन मैंने पूछा, तुम चौथी के संबंध में भी निःसंकोच कहो। उसने कहा, उसकी उम्र पचास साल है। और मैंने उसके लिए पचास हजार की व्यवस्था कर रखी है। तो मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि मुझे पता ही नहीं कैसे मेरे मुंह से निकल गया! मैंने उनसे पूछा, और लड़की नहीं है तुम्हारी, जिसकी उम्र साठ साल हो ? और मैं पचास वर्ष की औरत से शादी कर के घर लौट आया। यह तो रास्ते में ही मुझे पता चला कि यह मैंने क्या कर लिया।
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लेकिन मन बहुत खंड है। एक खंड सौंदर्य को मांगता है, एक खंड धन को मांगता है। इसलिए तुम अपने मन पर भरोसा मत करना। तुम कुछ लेने जाओगे, कुछ ले कर लौट आओगे। और तुम्हें बहुत बार ऐसा हुआ है कि बाजार तुम लेने कुछ गए थे और ले कर तुम कुछ लौट आए। इस पृथ्वी पर भी तुम कुछ और ही लेने आते हो, और कुछ और ही ले कर लौट जाते हो। तुम अपने मन पर भरोसा मत करना।
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तुमने अगर अपने मन का भरोसा किया, तो तुम कहीं के न रह जाओगे। मन का भरोसा अगर तुमने किया, तो तुम खंड-खंड हो जाओगे, पारे की तरह टूट जाओगे। संयम का अर्थ है, मन का भरोसा छोड़ देना। मन की मत सुनना। मन के पीछे जो साक्षी छिपा है, उसकी सुनना। और साक्षी की तुम सुनोगे, तो तुम याद रख सकोगे कि तुम क्या पाने इस संसार में आए हो। क्या खरीदने आए हो बाजार में। वह याद तुम्हारा लक्ष्य बनेगी।
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तब तुम बहुत से रास्ते, जो टूटते हैं अलग-अलग दिशाओं में, उनको छोड़ने की सामर्थ्य रख सकोगे। संयम का अर्थ है, सार के लिए असार को छोड़ने की क्षमता। व्यर्थ के लिए, जिसका कोई मूल्य नहीं है, जिससे अंतिम कोई सिद्धि पूरी न होगी, जिससे जीवन में कोई आनंद, कोई शांति, कोई सत्य फलित न होगा।
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उसका भी टेम्प्टेशन है, उसकी भी बड़ी उत्तेजना है। वह भी आकर्षित करता है। और तुम कई बार कहते हो कि क्या हर्जा है? रास्ते से उतर कर इस फूल को थोड़ा तोड़ लें, फिर रास्ते पर आ जाएंगे। लेकिन फूल को तोड़ने जब तुम उतरते हो, और चार कदम तुम फूल की तरफ चलते हो, तब और भी फूल हैं आगे। और तुम्हारी यात्रा बदल गयी। तुम जरा इंच भर यहां-वहां हटे, तुमने जरा-सा क्षणभंगुर का मोह अपने भीतर बचाया, तुम जरा झुके, कि तुम गए।
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तुम्हारे भटकने के लिए हजार मार्ग हैं, और पहुंचने के लिए एक मार्ग है। इसलिए बड़ी याददाश्त की जरूरत है। निरंतर स्मरण की जरूरत है कि भटकने के लिए हजार उपाय हैं, पहुंचने के लिए एक उपाय है। भटकाने वाले करोड़ हैं, पहुंचाने वाला एक है। भटकना चाहो तो कोई अंत नहीं है। जन्मों-जन्मों तक भटकते रहो। वही तुमने किया है, वही तुम अभी भी कर रहे हो। पहुंचना हो तो एक मार्ग है।
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स्मरण रखना, सत्य अनंत नहीं हैं, सत्य एक है। असत्य अनंत हैं। उनकी कोई गिनती करनी संभव नहीं है। पाने योग्य एक है, छोड़ने योग्य अनंत हैं। तुमने अगर कभी बच्चों की पहेलियां देखी हैं–पजल्स, जिनमें बच्चों के लिए बहुत से रास्ते होते हैं। द्वार एक होता है निकलने का, या जाने का, भटकाने के लिए बहुत से रास्ते होते हैं। जो लगते बिलकुल रास्ते जैसे हैं, लेकिन जब तुम चलते हो उन पर तो तुम पाते हो कि आगे आ कर दरवाजा बंद हो गया। कहीं निकल नहीं पाते।
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जिंदगी भी वैसी ही एक पहेली है। और बच्चों की पहेलियां तो बहुत छोटी होती हैं। एक कागज पर बनी होती हैं। जिंदगी की पहेली अंतहीन है। न उसका आदि है, न कोई अंत है। बड़ी पहेली है। इसलिए तो गुरु का मूल्य है। क्योंकि पहेली इतनी बड़ी है, अगर तुम अपने ही सहारे खोजने की कोशिश किए और अगर तुम अपने ही हाथ से चलते रहे, तो तुम हजारों बार भटकोगे।
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और तब खतरा यह है कि कहीं हजारों बार भटक कर तुम यह न समझ लो कि निकलने का कोई रास्ता ही नहीं है। कहीं तुम निराश न हो जाओ, कहीं तुम हताश हो कर बैठ ही न जाओ। खतरा यह भी है कि कहीं भटकते-भटकते भटकना तुम्हारी आदत न हो जाए। क्योंकि जिस काम को हम बहुत बार करते हैं, उसे हम करने में कुशल हो जाते हैं। वह काम कोई भी हो। अगर तुम बहुत बार भटकते हो, तो तुम भटकने में कुशल हो जाते हो। तुम इतने कुशल हो जाओगे भटकने में कि ठीक रास्ता तुम्हारे सामने पड़ेगा तो तुम उससे बच ही जाओगे।
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गुरु का अर्थ केवल इतना ही है कि जिसने द्वार पा लिया हो, और जो तुम्हें भटकने से रोके। और जो तुम से कहे कि वह रास्ता कितना ही प्रलोभन वाला दिखायी पड़ता हो, कहीं पहुंचाता नहीं है। आखिर में तुम दीवाल पाओगे, वहां कोई द्वार नहीं है। तुम धन को कितना ही पा लो, क्या पाओगे ? आखिर में पाओगे, दीवाल खड़ी हो गयी। तुम पद को पा कर क्या पाओगे ? आखिर में पाओगे, मार्ग खो गया।
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तुम कितनी ही प्रतिष्ठा इकट्ठी कर लो, क्या मिलेगा ? जिनसे तुमने प्रतिष्ठा पायी उनके पास ही कुछ नहीं है। वे तुम्हें क्या दे सकेंगे ? जिनका खुद का कोई मूल्य नहीं है, उनके मंतव्य का क्या मूल्य होगा ? तुम किससे पूछते फिर रहे हो ? तुम किसकी आंखों में प्रतिष्ठा पाने के लिए उत्सुक हो ? जिनके पास अपनी आंखें नहीं हैं, जो अंधे हैं, उन्होंने अगर तुम्हारा सम्मान भी किया, तो सम्मान में क्या मूल्य होगा ? वह पानी का बबूला है। मिलेगा भी नहीं और फूट जाएगा।
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नानक कहते हैं, ‘संयम भट्टी है।’ भट्टी भी बड़ा विचार कर कहते हैं। क्योंकि संयम कोई फूलों की सेज नहीं है, आग है। मन तो चाहेगा फूलों की सेज। और संयम तो आग है। इसलिए मन संयम से बचता है। मन असंयम के लिए सब तर्क खोजता है। और संयम के विरोध में तर्क खोजता है। मन असंयम को कहता है, भोग; संयम को कहता है, दुख। जब कि स्थिति बिलकुल उलटी है।

ओशो

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