रविवार, 7 अप्रैल 2024

सब विषय मिथ्या

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*जब समझ्या तब सुरझिया, उलट समाना सोइ ।*
*कछु कहावै जब लगै, तब लग समझ न होइ ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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श्रीरामकृष्ण - देखो, एक कहानी सुनो । एक राजा था । एक पण्डित के पास वह नित्य भागवत सुनता था । रोज भागवतपाठ के बाद पण्डित राजा से कहता था, ‘राजा, तुम समझे ?’ राजा भी रोज कहता था, 'पहले तुम समझो ।'
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भागवती पण्डित घर जाकर रोज सोचता था, 'राजा इस तरह क्यों कहता है ? मैं रोज इतना समझता हूँ और राजा उल्टा कहता है - तुम पहले समझो । यह क्या है ?’ पण्डित भजन-साधन भी करता था । कुछ दिनों बाद उसमें जागृति हुई, तब उसने समझा, ईश्वर ही वस्तु है और शेष सब – घर - द्वार, कुटुम्ब-परिवार, मान-मर्यादा अवस्तु हैं ।
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संसार में सब विषय मिथ्या प्रतीत होने के कारण उसने संसार छोड़ दिया । जाते समय वह केवल एक आदमी से कह गया – ‘राजा से कहना, अब मैं समझ गया हूँ ।’
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"एक कहानी और सुनो । एक आदमी को भागवत के एक पण्डित की जरुरत पड़ी, जो रोज जाकर उसे भागवत सुना सके । इधर भागवती पण्डित मिल नहीं रहा था । बहुत खोजने के बाद एक आदमी ने आकर कहा, 'भाई एक बहुत अच्छा भागवती पण्डित मिला है ।' उसने कहा, ‘फिर तो काम बन गया । उसे ले आओ ।’ आदमी ने कहा ‘परन्तु जरा कठिनाई है । उसके कुछ हल और बैल हैं; उन्हीं को लेकर वह दिन-रात काम में लगा रहता है, काश्तकारी सम्हालनी पड़ती है, उसे बिलकुल अवकाश नहीं मिलता ।’
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तब जिसे पण्डित की जरूरत थी, उसने कहा, 'अजी, जिसे हल और बैलों के पीछे पड़ा रहना पड़ता है, उस तरह का पण्डित में नहीं चाहता । मैं तो ऐसा पण्डित चाहता हूँ जिसे अवकाश हो और जो मुझे भागवत सुना सके ।' (डाक्टर से) समझे? (डाक्टर चुप हैं)
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"परन्तु केवल पाण्डित्य से क्या होगा ? पण्डित लोग जानते तो बहुत हैं - वेदों, पुराणों और तन्त्र की बातें । परन्तु कोरे पाण्डित्य से होता क्या है ? विवेक और वैराग्य अगर किसी में हों तो उसकी बातें सुनी जा सकती हैं । पर जिसने संसार को ही सार समझ लिया है, उसकी बातों को सुनकर क्या होगा ?
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"गीता के पाठ से क्या होता है ? - वही, जो दस बार 'गीता' 'गीता' उच्चारण करने से । 'गीता' 'गीता' कहते रहने से ‘तागी’(त्यागी) 'तागी'(त्यागी) निकलता है । संसार में जिसकी कामिनी और कांचन पर आसक्ति छूट गयी है, जो ईश्वर पर सोलहों आने भक्ति कर सका है, उसी ने गीता का मर्म समझा है ।
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गीता को पूरा पढ़ने की आवश्यकता नहीं । 'त्यागी, त्यागी' कह सकने ही से हुआ - त्यागी बन सकने से ही हुआ ।”
डाक्टर - 'त्यागी' कहने के लिए एक 'य' अधिक जोड़ना पड़ता है ।
मणि - परन्तु 'य' के बिना भी काम चल जाता है । जब ये (श्रीरामकृष्ण) टेनेटी में महोत्सव देखने गये थे, तब वहाँ नवद्वीप के गोस्वामी से इन्होंने गीता की यह बात कही थी । यह सुनकर गोस्वामी ने कहा था, "तग् धातु में घञ प्रत्यय के लगने से ‘ताग’ होता है; फिर उसमें 'इन्' लगाने से 'तागी' बनता है; इस तरह 'त्यागी' और 'तागी' का अर्थ एक ही होता है ।"
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डाक्टर - मुझे एक ने राधा शब्द का अर्थ बतलाया था । कहा राधा का अर्थ क्या है, जानते हो ? इस शब्द को उलट लो, अर्थात् 'धारा-धारा' । (सब हँसते है) (सहास्य) आज 'धारा' तक ही रहा ।
(क्रमशः)

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