सोमवार, 8 अप्रैल 2024

*लाल कहा मम पूजन धारहु*

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*दादू पीवै पिलावै राम रस, प्रेम भक्ति गुण गाइ ।*
*नित प्रति कथा हरि की करै, हेत सहित ल्यौ लाइ ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*लाल कहा मम पूजन धारहु,*
*कुंज विलास कहो रस नीको ।*
*सो विस्तारत नैन लख्यो सुख,*
*वाम१ लियो पक्ष जीवन जीको ॥*
*गान करै रस पान वरै२ उर,*
*ध्यान धेरै सु सदा प्रिया पी को ।*
*हैं गुन बौत३ स्वरूप कहै किमि,*
*मौद४ लहै मन और नहीं को ॥३९१॥*

श्रीराधिकावल्लभलालजी ने आज्ञा दी कि "मेरा पूजन करना धारण करो और कुंज विलास के श्रेष्ठ रस का कथन करो ।" तब आपके द्वारा सेवा की पद्धति और कुंज धाम के विलास का रस "राधासुधानिधि" में प्रकट हुआ । जो नेत्रों से देखा वही कुंजनिवास का रस आपने विसार से कहा और अपने जीव का जीवन रूप राधा१जी का पक्ष आपने ग्रहण किया ।
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रात दिन युगल सरकार का यश गाते थे । उनके माधुर्य भक्ति रूप श्रेष्ठ२ रस का पान करते थे । हृदय में सदा राधाकृष्ण का ध्यान करते थे । आपके गुण बहुत३ हैं । कवि उनका स्वरूप कैसे कह सकता है ? उससे मन आनन्द४ को प्राप्त करता है और कथन तो किसी प्रकार से भी नहीं बन सकता है ॥
(क्रमशः)

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