बुधवार, 10 अप्रैल 2024

*ऐहिक ज्ञान अर्थात् साइन्स*

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*दादू होना था सो ह्वै रह्या, जे कुछ किया पीव ।*
*पल बधै न छिन घटै, ऐसी जानी जीव ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(४)ऐहिक ज्ञान अर्थात् साइन्स*
डाक्टर चले गये । श्रीरामकृष्ण के पास मास्टर बैठे हुए हैं । एकान्त में बातचीत हो रही है । मास्टर डाक्टर के यहाँ गये थे, वहीं सब बात हो रही है ।
मास्टर - (श्रीरामकृष्ण से) - लाल मछलियों को इलायची का छिलका दिया जा रहा था, और गौरैयों को मैदे की गोलियाँ ।
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डाक्टर ने मुझसे कहा - 'तुमने देखा, उन्होंने (मछलियों ने) इलायची का छिलका नहीं देखा, इसलिए चली गयीं ! पहले ज्ञान चाहिए, फिर भक्ति । दो-एक गौरियाँ भी मैदे की गोलियों को फेंकते हुए देखकर उड़ गयीं । उन्हें ज्ञान नहीं है, इसलिए भक्ति नहीं हुई ।'
श्रीरामकृष्ण - (हँसकर) - उस ज्ञान का अर्थ है ऐहिक ज्ञान - साइन्स का ज्ञान । मास्टर - उन्होंने फिर कहा, ‘चैतन्य कह गये हैं, बुद्ध कह गये हैं या ईशु कह गये हैं, क्या इसलिए विश्वास करूँ ? – यह ठीक नहीं ।’
“उनके नाती हुआ है । नाती का मुँह देखकर वे अपनी पुत्रवधू की प्रशंसा करने लगे । कहा – ‘घर में इस तरह रहती है कि मुझे कहीं आहट भी नहीं मिलती । इतनी शान्त और लजीली है, - ’ ”
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श्रीरामकृष्ण - यहाँ की बातें ज्यों ज्यों सोच रहा है, त्यों त्यों उसमें श्रद्धा आ रही है । एकदम क्या कभी अहंकार जाता है ? उसमें इतनी विद्या है, मान है, धन है, परन्तु यहाँ की(स्वयं को इंगित करके) बातों से अश्रद्धा नहीं करता ।
(क्रमशः)

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