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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४२५)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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*४२५. करुणा विनती । त्रिताल*
*जनि छाड़ै राम जनि छाड़ै,*
*हमहिं विसार जनि छाड़े ।*
*जीव जात न लागै बार, जनि छाड़ै ॥टेक॥*
*माता क्यों बालक तजै, सुत अपराधी होइ ।*
*कबहुँ न छाड़े जीव तैं, जनि दुःख पावै सोइ ॥१॥*
*ठाकुर दीनदयाल है, सेवक सदा अचेत ।*
*गुण औगुण हरि ना गिणै, अंतर तासौं हेत ॥२॥*
*अपराधी सुत सेवका, तुम हो दीन दयाल ।*
*हमतैं औगुण होत हैं, तुम पूरण प्रतिपाल ॥३॥*
*जब मोहन प्राणहि चलै, तब देही किहि काम ।*
*तुम जानत दादू का कहै, अब जनि छाड़ै राम ॥४॥*
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हे राम ! मैं आपसे बार-बार प्रार्थना कर रहा हूँ कि मुझे भूलकर भी कभी आप न छोड़े । न जाने यह प्राण शरीर को छोड़कर कब चला जाय । क्या माता अपने दोषी पुत्र को कभी त्यागती हैं, नहीं उसकी माता उसको सुख हो ऐसा ही काम करती हैं वैसे ही आप मेरे स्वामी दीनों की रक्षा करने वाले हैं ।
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सेवक की रक्षा के लिये नित्य सावधान रहते हुए सेवक को सुख देने के लिया यत्न करते रहते हैं । हरि कभी भी भक्त के अवगुण या गुणों को नहीं देखते । वे तो मन के भावों को देखते हैं । भले ही मैं आपका अपराधी बालक भक्त हूँ । किन्तु आप दीनदयालु हैं ।
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अतः भगवान् अवगुणी भक्त के अवगुणों को न देखकर उसकी रक्षा ही करते हैं । आप तो जानते ही हैं, मैं आपको क्या कहूं, जब यह शरीर प्राणों के चले जाने से मृत हो जायेगा । तब यह किस काम का रहेगा ? अतः मैं तो यह ही विनय कर रहा हूँ कि आप मुझे न छोड़ें ।
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स्तोत्ररत्नावली में कहा है कि –
जिसका हृदयकमल सैकड़ों जन्मों के संचित पापों से युक्त हैं । तो पशुतुल्य पतित हो गया । उस अति मन्द बुद्धिवाले मुझ पर हे रणधीर रघुवीर ! कृपा कीजिये । आप ही मेरे माता-पिता, बहिन हैं । हे कृपालो आप ही मेरे रक्षक हैं । हे दयामय रघुनन्दन अपने भक्तों को चरणकमलों की दासता दीजिये ।
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आलस्यहीन मुनिवरों का समूह संसार के दुःखरूपी दावानल की जलन शान्त करने के लिये जिन भगवान् के चरणकमलों की आराधना करता हैं । वे समस्त जगत् के आधारभूत दीनबन्धु मेरे अपराधों को भूल कर मुझे दर्शन दें ।
(क्रमशः)
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