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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*पंच तत्त्व का पूतला, यहु पिंड सँवारा ।*
*मंदिर माटी मांस का, बिनशत नहिं बारा ॥*
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कैरौं पांडौं सारिखा, देता परदल मोड़ि ।
बषनां बल कौ गर्ब करि, अंति मुवा सिर फोड़ि ॥१३॥
कौरव और पांडव बल में समान थे । शत्रुओं के दलों के दलों को नाश करने में कुशल थे किन्तु दोनों ही बल का गर्व करके अंत में लड़कर मर गये ॥१३॥
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बषनां गारै गरब कै, बिण्स्या छपन करोड़ि ।
मेरी मेरी करि गया, आया नहीं बहोड़ि ॥१४॥
गर्व रूपी गारे = कीचड़ में धँसकर छप्पन करोड़ यादव कुछ ही समय में लड़कर विनष्ट हो गये । सभी यह मेरी है, यह मेरी है करते रहे, किन्तु जाने के पश्चात् उनमें से एक भी उस अपनी को संभालने नहीं आये ॥१४॥
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दिन द्वै दलबल जोड़ि करि, बषनां मन गरबाइ ।
काबाँ पै गोपी सबै, अरजन गयौ लुटाइ ॥१५॥
कुछ दीनों तक = सैनिकों का दल एकत्रित करके, राजा मन में गर्व करता है कि अब मैं अमुक राजा को हराकर उसका धन, ऐश्वर्य छीन लूँगा...
“असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
इश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥गीता॥१६/१४॥
किन्तु उसका ऐसा सोचना व्यर्थ हैं । इतिहास साक्षी है, श्रीकृष्ण के गोलोक चले जाने व श्रीकृष्ण के आदेशानुसार उनकी पत्नियों आदि को यथास्थान पहुँचाते समय रास्ते में अर्जुन के होते हुए भी आभीरों ने उन पत्नियों को छीन लिया । अर्जुन असहाय हो गया । उसका गर्व जाता रहा ॥१५॥”
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पंच तत्त कौ पूतलौ, काँइ ब्रामण काँइ ढेढ ।
बषनां भजि रे राम नैं, पर्हौ मेल्हि कुलतेढ ॥१६॥
शरीर पंचतत्त्वों से निर्मित होता है
“छिति जल पावक गगन समीरा ।
पंच रचित अति अधम सरीरा ॥”
चाहे यह शरीर ब्राहमण का हो अथवा चांडाल का । बषनांजी कहते हैं, कुल का टेढापन = ऊंचा-नीचापन दूर करके रामजी का भजन करो ॥१६॥
(क्रमशः)
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