मंगलवार, 14 मई 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४२६

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४२६)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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*४२६. चौताल*
*विषम बार हरि अधार, करुणा बहु नामी ।*
*भक्ति भाव बेग आइ, भीड़ भंजन स्वामी ॥टेक॥*
*अंत अधार संत सुधार, सुन्दर सुखदाई ।*
*काम क्रोध काल ग्रसत, प्रकटो हरि आई ॥१॥*
*पूरण प्रतिपाल कहिये, सुमिर्‍यां तैं आवै ।*
*भरम कर्म मोह लागे, काहे न छुड़ावै ॥२॥*
*दीनदयालु होहु कृपालु, अंतरयामी कहिये ।*
*एक जीव अनेक लागे, कैसे दुख सहिये ॥३॥*
*पावन पीव चरण शरण, युग युग तैं तारे ।*
*अनाथ नाथ दादू के, हरि जी हमारे ॥४॥*
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दया करने में अतिप्रसिद्ध जो करुणामय भगवान् हैं, वे ही विषम संकटों में भक्तों के आश्रय बनते हैं । विपत्ति का नाश करने वाले भगवान् भक्तिभाव से युक्त अपने भक्त को संकटग्रस्त देखकर अपने आप दौड़े चले आते हैं । भक्तों के तो सब जगह पर भगवान् ही आधार माने गये हैं ।
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भगवान् ही अपने भक्तों के कार्यभार को वहन करते हुए उनको सुख देते रहते हैं । हे हरे ! कामक्रोध आदि शत्रुरूप काल मुझे दिनरात खा रहा हैं । अतः मेरे हृदय में प्रकट होकर दर्शन दीजिये । शास्त्र आपको भक्तरक्षक कहता हैं और आप भी भक्तों की प्रार्थना को सुन कर शीघ्र चले आते हैं, ऐसी प्रसिद्धि सब जगह पर आपकी हो रही हैं । भ्रम और नाना विधिकर्म और मोह आदि शत्रु मेरे को दुःख दे रहे हैं । सो आकर शीघ्र इनसे मुझे मुक्त कराइए ।
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लोग आपको दयालु अन्तर्यामी कहते हैं अतः मेरे ऊपर दया करो । अनेक कामक्रोध आदि प्रबल शत्रु पीड़ा दे रहे हैं । मैं अकेला हूँ, इन सब कष्टों को कैसे सहन कर सकूंगा । हे पावन परमात्मा मैं आपके शरणागत हूँ आप सदा ही शरणागतों की रक्षा करते रहते हैं । अतः हे अनाथ नाथ मेरा भी उद्धार करो ।
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स्तोत्ररत्नावली में कहा है कि –
जिसमें दोषरूपी हजारों सर्प हैं । क्रोधरूपी बड़वानल की ज्वालायें उठ रही हैं । जन्म जरा मरणरुप तरंगावली हैं । तथा मद और कामरूपी मगरमच्छ और भंवर हैं । ऐसे इस दुःखमय भवसागर में चिरकाल से पड़े हुए मुझको कृपा करके निकालिये । और दयामयरघुनन्दन ! आपको भजने वाले अपने भक्त को आपके चरण कमलों की दासता दीजिये ।
(क्रमशः)

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