शनिवार, 25 मई 2024

*श्री रज्जबवाणी, शूरातन का अंग(५)*

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*देखा देखी सब चले, पार न पहुँच्या जाइ ।*
*दादू आसन पहल के, फिर फिर बैठे आइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ मन का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
शूरातन का अंग (५)
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भजैं संसार लगै न पुकार न होई करार१,
लहै न विचार हो नाम अपार सु एक लहैगो ।
पक्षी हजार उडैं सब डार सु आवन हार,
रहै न करार२ अकाश अनल ज्यों एक रहैगो ॥
चले बहु संग सु देखन जंग न आव ही अंग३,
ह्वै मूरति भंग सती ज्यों सलौ४ कोई एक रहैगो ।
चले बहु पूर५ सु बाज हिं तूर६ गये भग७ भूर८,
रहे रण शूर हो रज्जब राम को एक कहैगो ॥६॥३७॥
संसार में भोगों के लिये सभी प्राणी प्रभु को भजते हैं किंतु उनकी पुकार प्रभु के कान के समीप नहीं लगती, न कोई उसके सुनने की शर्त१ ही होती है कारण - वे विचार पूर्वक भजन करने की योग्यता प्राप्त नहीं करते, संसार में ही फँसे रहकर कामना पूर्ति करना चाहते हैं । विचार पूर्वक नाम का भजन करके तो उस अपार ब्रह्म को कोई एक विरला ही प्राप्त करेगा ।
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हजारों पक्षी है सभी अकाश में उड़ते हुये वृक्षों की शाखाओं पर जाते हैं, किंतु उन शाखाओं पर आने वाले पक्षियों की अकाश में स्थिरता२ का कोई नियत समय नहीं होता, आकाश में अनल पक्षी ही स्थिर रहता है । वैसे ही प्रभु में वृत्ति लगाने वाले तो बहुत होते हैं किंतु अनल पक्षी के समान ब्रह्म स्वरूप में स्थिर कोई एक ही रहता है ।
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युद्ध देखने को बहुत से साथ जाते हैं किंतु जिनके शरीर३ पीछे न आवें, मूर्ति वीरता के साथ युद्ध में ही नष्ट हो जाय, ऐसे वीर सब नहीं होते । वैसे ही प्रभु प्राप्ति के लिये मरण से न डरैं ऐसे साधक सब नहीं होते । सती के साथ श्मशान में बहुत से जाते हैं किंतु एक सती ही चिता४ को ग्रहण करती है । उस सती के समान मरणा स्वीकार करके कोई एक ही प्रभु को प्राप्त करने का साहस करता है ।
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युद्ध में बहुत सा समूह५ जाता है किंतु रण वाद्य बजते ही बहुत से भाग जाते हैं । किंतु कोई विरला ही कामादि को जीत कर राम नाम कहता हुआ राम को प्राप्त करता है ।
(क्रमशः)

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