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*विरही जन जीवै नहीं, जे कोटि कहैं समझाइ ।*
*दादू गहिला ह्वै रहै, तलफि तलफि मर जाइ ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)नरेन्द्र का तीव्र वैराग्य*
शाम हो गयी है, नरेन्द्र नीचे बैठे हुए एकान्त में मणि से अपने प्राणों की विकलता के सम्बन्ध में बातें कर रहे हैं ।
नरेन्द्र - (मणि से) - गत शनिवार को मैं यहाँ ध्यान कर रहा था, एकाएक छाती के भीतर न जाने कैसा होने लगा ।
मणि - कुण्डलिनी का जागरण हुआ होगा ।
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नरेन्द्र - सम्भव है, वही हो । इड़ा और पिंगला का बिलकुल स्पष्ट अनुभव हुआ । हाजरा से मैंने कहा, छाती पर हाथ रखकर देखने के लिए । कल रविवार था, ऊपर जाकर मैं इनसे(श्रीरामकृष्ण से) मिला और सब बातें उन्हें कह सुनायीं ।
मैंने कहा, "सब की तो बन गयी, कुछ मुझे भी दीजिये । सब का तो काम हो गया और मेरा क्या न होगा ?".
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मणि - उन्होंने तुमसे क्या कहा ?
नरेन्द्र - उन्होंने कहा, ‘तू घर का कोई प्रबन्ध करके आ, सब हो जायगा । तू क्या चाहता है ?’
मैंने कहा, 'मेरी इच्छा है, लगातार तीन-चार दिन तक समाधि-लीन रहा करूँ । कभी कभी बस भोजन भर के लिए उठूँ !'
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उन्होंने कहा, ‘तू तो बड़ी नीच बुद्धि का है । उस अवस्था से भी ऊँची अवस्था है । तू गाता भी तो है - जो कुछ है, सो तू ही है ।’
मणि - हाँ, वे तो सदा ही कहते हैं कि समाधि से उतरकर मन देखता है कि वे ही जीव और जगत् हुए हैं । यह अवस्था ईश्वरकोटि की हो सकती है । वे कहते है, जीवकोटि समाधिअवस्था को प्राप्त करते हैं, परन्तु फिर वे वहाँ से उत्तर नहीं सकते ।
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नरेन्द्र - उन्होंने कहा, 'तू घर के लिए कोई व्यवस्था करके आ । समाधिलाभ की अवस्था से भी ऊँची अवस्था हो सकेगी ।'
"आज सबेरे मैं घर गया तो सब लोग डाँटने लगे और कहा, 'तुम क्या इधर-उधर घूमते रहते हो ! कानून की परीक्षा सिर पर आ गयी और तुम्हें न पढ़ना न लिखना - आवारा घूमते फिरते हो !"
मणि - तुम्हारी माँ ने भी कुछ कहा ?
नरेन्द्र - नहीं, वे मुझे खिलाने के लिए व्यस्त हो रही थीं ।
मणि – फिर ?
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नरेन्द्र - दीदी के घर में, उसी पढ़नेवाले कमरे में मैं पढ़ने लगा । पर पढ़ने बैठा तो हृदय में एक बहुत बड़ा आतंक छा गया, जैसे पढ़ना एक भय का विषय हो ! छाती धड़कने लगी ! - इस तरह मैं और कभी नहीं रोया ।
"फिर पुस्तकें फेंककर भागा ! - रास्ते से होकर भागता गया । जूते रास्ते में न जाने कहाँ पड़े रह गये ! धान के पयाल के ढेर के पास से होकर भाग रहा था । देह भर में पयाल लिपट गया । मैं काशीपुर के रास्ते की ओर भाग रहा था ।"
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नरेन्द्र कुछ देर चुप रहे । फिर कहने लगे - “विवेकचूड़ामणि सुनकर मन और बिगड़ गया है । शंकराचार्य लिखते हैं - इन तीन संयोगों को बड़ी ही तपस्या का फल समझना चाहिए, ये बड़े भाग्य से मिलते हैं, - मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रयः ।
"मैंने सोचा, मेरे लिए तीनों का संयोग हो गया है । बड़ी तपस्या का फल तो यह है कि मनुष्य-जन्म हुआ है, बड़ी तपस्या से मुक्ति की इच्छा हुई है, और सब से बड़ी तपस्या का फल यह है कि ऐसे महापुरुष का संग प्राप्त हुआ है !"
मणि- अहा !
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नरेन्द्र - संसार अब अच्छा नहीं लगता । संसार में जो लोग हैं, उनसे भी जी हट गया है । दो-एक भक्तों को छोड़कर और कुछ अच्छा नहीं लगता ।
नरेन्द्र फिर चुप हो रहे । नरेन्द्र के भीतर तीव्र वैराग्य है । इस समय भी प्राणों में उथल-पुथल मची हुई है । नरेन्द्र फिर बातचीत कर रहे हैं ।
नरेन्द्र (मणि के प्रति ) - आप लोगों को तो शान्ति मिल गयी है, परन्तु मेरे प्राण अस्थिर हो रहे हैं । आप ही लोग धन्य हैं ।
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मणि ने कोई उत्तर नहीं दिया । चुप हैं । सोच रहे हैं - श्रीरामकृष्ण ने कहा था, ईश्वर के लिए व्याकुल होना चाहिए, तब उनके दर्शन होते हैं । सन्ध्या के बाद ही मणि ऊपरवाले कमरे में गये । देखा, श्रीरामकृष्ण सो रहे हैं ।
रात के नौ बजे का समय है । श्रीरामकृष्ण के पास निरंजन और शशी हैं । श्रीरामकृष्ण जागे । रह-रहकर वे नरेन्द्र की ही बातें कर रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - नरेन्द्र की अवस्था कितने आश्चर्य की है ! देखो, यही नरेन्द्र पहले साकार नहीं मानता था । अब इसके प्राणों में कैसी खलबली मची हुई है, तुमने देखा ? जैसा उस कहानी में है - किसी ने पूछा था, 'ईश्वर किस तह मिल सकेंगे ?' तब गुरु ने कहा, 'मेरे साथ चलो, मै तुम्हें दिखलाता हूँ कि किस तरह की अवस्था में ईश्वर मिलते हैं ।' यह कहकर गुरु ने एक तालाब में उसे ले जाकर डुबो दिया और ऊपर से दबाकर रखा, फिर कुछ देर बाद उसे छोड़कर गुरु ने पूछा - 'कहो तुम्हारे प्राण कैसे हो रहे थे?' उसने कहा, 'प्राण छटपटा रहे थे - मानो अब निकलते ही हों ।'
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"ईश्वर के लिए प्राणों के छटपटाते रहने पर समझना कि अब दर्शन में देर नहीं है । अरुणोदय होने पर, पूर्व में लाली छा जाने पर समझ पड़ता है कि अब सूर्योदय होगा ।"
आज श्रीरामकृष्ण की बीमारी बढ़ गयी है । शरीर को इतना कष्ट है, फिर भी नरेन्द्र के सम्बन्ध में ये सब बातें संकेत द्वारा भक्तों को बतला रहे हैं ।
आज रात को नरेन्द्र दक्षिणेश्वर चले गये । अमावस्या की रात्रि, घोर अन्धकारमयी हो रही है । नरेन्द्र के साथ दो-एक भक्त भी गये । रात को मणि बगीचे में ही हैं । स्वप्न में देख रहे हैं, वे संन्यासियों की मण्डली के बीच में बैठे हुए हैं ।
(क्रमशः)
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