मंगलवार, 21 मई 2024

*ईश्वर के लिए नरेन्द्र की व्याकुलता*

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*सारा सूरा नींद भर, सब कोई सोवै ।*
*दादू घायल दर्दवंद, जागै अरु रोवै ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १३३~भक्तों का तीव्र वैराग्य*
*(१)ईश्वर के लिए नरेन्द्र की व्याकुलता*
श्रीरामकृष्ण काशीपुर के बगीचे में, मकान के ऊपरवाले मँजले में बैठे हुए हैं । दक्षिणेश्वर के कालीमन्दिर से श्रीयुत राम चटर्जी उनका कुशल-समाचार लेने के लिए आये थे ।
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श्रीरामकृष्ण मणि के साथ इसी सम्बन्ध में बातचीत करते हुए पूछ रहे हैं – ‘क्या इस समय वहाँ (दक्षिणेश्वर में) ठण्डक ज्यादा है ?’
आज पौष कृष्णा चतुर्दशी, सोमवार है, ४ जनवरी, १८८६ । दिन के चार बजे का समय होगा ।
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नरेन्द्र आये और आसन ग्रहण किया । श्रीरामकृष्ण उन्हें रह-रहकर देख रहे हैं और मुस्करा रहे हैं - मानो उनका स्नेह उछला जा रहा हो । श्रीरामकृष्ण ने मणि से इशारे से कहा कि नरेन्द्र रोये थे । फिर वे चुप हो गये । इसके बाद उन्होंने फिर इशारा किया कि नरेन्द्र घर से रास्ते भर रोते हुए आये थे ।
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सब लोग चुप हैं । अब नरेन्द्र बातचीत कर रहे हैं ।
नरेन्द्र - सोच रहा हूँ, आज वहाँ चला जाऊँ ।
श्रीरामकृष्ण - कहाँ ?
नरेन्द्र - दक्षिणेश्वर के बेलतल्ले में, - वहाँ रात को धूनि जलाऊँगा ।
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श्रीरामकृष्ण - नहीं, वे लोग (पड़ोस में 'मैगनीज' के पदाधिकारी) जलाने नहीं देंगे । पंचवटी बहुत अच्छी जगह है, - बहुत से साधुओं ने वहाँ जप-ध्यान किया है ।
"परन्तु बहुत ठण्डा है, और अँधेरा भी है ।"
सब लोग चुप हैं । श्रीरामकृष्ण फिर बोले ।
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श्रीरामकृष्ण - (नरेन्द्र से, सहास्य) - तू पढ़ेगा नहीं ?
नरेन्द्र - (श्रीरामकृष्ण और मणि की ओर देखकर) - एक दवा पाऊँ तो जी में जी आये, - वह दवा ऐसी कि उससे जो कुछ मैने पढ़ा है, सब भूल जाऊँ ।
श्रीयुत गोपाल भी बैठे हुए हैं । उन्होंने कहा - 'साथ मैं भी चलूँगा ।'
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श्रीयुत कालीपद घोष श्रीरामकृष्ण के लिए अंगूर लाये हैं । अंगूरों का डब्बा श्रीरामकृष्ण के पास ही रखा था । श्रीरामकृष्ण भक्तों को अंगूर दे रहे हैं । नरेन्द्र को पहले दिया । फिर प्रसादी बताशों की तरह सब अंगूर लुटा दिये । भक्तों ने, जिसने जहाँ पाया, बीन लिया ।
(क्रमशः)

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